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१७१. भाषण: सोशल सर्विस लीग, मद्रासमें[१]

फरवरी १६, १९१६

आज आपने मुझसे समाज-सेवाके बारेमें बोलनेको कहा है। यदि मैं आज आप-जैसे प्रबुद्ध श्रोता-समाजके अनुरूप भाषण न दे सकूँ तो आप मानिए कि मैंने बिनासोचे-समझे जल्दीमें जो बहुत सारे काम स्वीकार कर लिये, यह उसीका परिणाम है। इच्छा तो यह थी कि आपके सामने क्या कहना है, इसपर मैं, थोड़ा ही सही, सोच लूँ, किन्तु वह सम्भव नहीं हुआ। लेकिन जैसा हमारी अध्यक्षानें[२] कहा है, हम लोगोंको जरूरत कामकी है, भाषणोंकी नहीं। इसलिए यदि आजकी इस संध्याके भाषणके बाद आपको लगे कि बहुत कुछ सुननेको नहीं मिला तो इससे आपका, अगर हो भी तो, कोई खास नुकसान नहीं होगा।[३]

मित्रो, धरित्रीपर दूसरी किसी भी सेवाकी तरह ही समाज-सेवाकी भी एक अनिवार्य शर्त――है और वह है योग्यता; जो वैसी सेवा करना चाहते हैं, उनमें उसे करनेकी समुचित योग्यता। इसलिए आज हम अपने आपसे यह सवाल करेंगे कि हममें से जो लोग इस तरहकी सेवामें लगे हैं उनमें और जो इस तरहकी सेवा करना चाहते हैं उसमें ऐसी योग्यता है या नहीं, क्योंकि आप इस बातपर मुझसे सहमत होंगे कि समाज-सेवक यदि बात बना सकते हैं तो बिगाड़ भी सकते हैं; और सेवाका उद्देश्य चाहे कितना भी अच्छा क्यों न हो, यदि सेवकोंमें उस विशिष्ट सेवाकी योग्यता नहीं है तो वे सेवा करनेके प्रयासमें सेवा नहीं, कुसेवा ही करेंगे। हम इन योग्यताओंपर विचार करें।

मेरा खयाल है, इस सम्बन्धमें मुझे, आज सवेरे वाई० एम० सी० ए० हॉलमें मैंने विद्यार्थियोंके सामने जिन योग्यताओंका वर्णन किया,[४] उन्हींको लगभग दुहरा देना चाहिए। सो इसलिए कि वे सभी स्थानों और अवसरोंपर लागू होती हैं और सभी तरहके कामके लिए जरूरी हैं, खासकर हमारे प्यारे वतनके राष्ट्रीय जीवनमें आजकल जिस समाज-सेवाकी आवश्यकता है उसके लिए। मेरी तो यह धारणा है कि हमें एक हाथमें सत्य और दूसरेमें अभयकी जरूरत है। यदि हम सत्यकी मशाल न लिये हों तो आगे कहाँ कदम रखें यह नहीं सूझेगा और अगर हम अभयको न अपनायें तो हम लोगोंको जो सन्देश देना चाहेंगे वह उचित अवसरपर नहीं दे सकेंगे। यदि हमारे मनमें यह अभय न हो तो जब परीक्षा की घड़ी, परीक्षाकी अन्तिम घड़ी, आयेगी, तब हम खरे नहीं उतर सकेंगे। और ऐसी घड़ियाँ लोगोंके जीवनमें उतनी अधिक नहीं आतीं, जितनी

  1. १. समाज-सेवा संव, मद्रास; मद्रास क्रिश्चियन कॉलेजमें आयोजित संघकी वार्षिक सभामें।
  2. २. श्रीमती हवाईटहेड, जिन्होंने सभाकी अध्यक्षता की थी।
  3. ३. पद अनुच्छेद नटेसनके स्पीचेज़ ऐंड राइटिंग्ज़ ऑफ महात्मा गांधीसे लिया गया है।
  4. ४. देखिए पिछला शीर्षक।