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भाषण: आश्रमके व्रतोंपर

ही सिद्धान्त नहीं है, बल्कि जीवनका भी एक महान् सिद्धान्त है। यह अहिंसा अथवा प्रेमके सम्यक् आचरणकी कुंजी है। आप लोग एक महान् धर्मके संरक्षक हैं। अतः यह आपका कर्तव्य है कि समाजके सामने इस नई जीवन पद्धतिका उदाहरण पेश करें, और अपने वचन और कर्मसे लोगोंको बताएँ कि घृणापर आधारित देशभक्ति “मारक” है तथा प्रेमपर आधारित देशभक्ति “तारक” है।

[अंग्रेजीसे]
हिन्दू, २८-२-१९१६
 

१७०. भाषण: आश्रमके व्रतोंपर[१]

फरवरी १६, १९१६

अध्यक्ष महोदय तथा मित्रो,

मैं कई बार कह चुका हूँ कि स्वयं अपनी वाणी सुननेका मुझे चाव नहीं है। और निस्सन्देह इस समय भी मेरी वैसी ही मनःस्थिति है।

विद्यार्थियोंके प्रति मेरे मनमें प्रेम है, मेरे मनमें उनके लिए आदर भी है और उन्हें मैं भावी भारतकी आशा मानता हूँ, मैंने उन्हींके विचारसे यहाँ भाषण देनेका निमन्त्रण स्वीकार किया था। मैं किस विषयपर बोलूँ यह तय नहीं कर पाया था। यहाँ किसी सज्जनने मुझे एक पर्ची भेजी है जिसमें लिखा है कि क्या आप कृपया बनारसकी घटनासे विद्यार्थियोंको अवगत करायेंगे? (हर्ष ध्वनि) खेद है कि मैं इन महाशय तथा उन अन्य लोगोंकी जो ऐसा चाहते हैं इच्छा पूरी नहीं कर सकूँगा। मेरे खयालसे तो उस घटनाको कोई भी महत्त्व नहीं दिया जाना चाहिए। ऐसा तो हुआ ही करता है, इसलिए उस घटनाके बारेमें कुछ न कहकर आज मैं आपके सामने उस विषयपर अपने हृदयके उद्गार प्रकट करूँगा जिसे मैं सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण और बहुमूल्य मानता हूँ।[२]

पिछले वर्ष अनेक विद्यार्थी मुझसे यहाँ बात करने आये थे। उनसे मैंने कहा था[३] कि मैं भारतमें किसी जगह एक संस्था, आश्रमकी स्थापना करने जा रहा हूँ। आज आपको मैं उसीके बारेमें बतानेवाला हूँ। में अनुभव करता हूँ, और अपने सार्वजनिक जीवनमें मैंने सदा इस बातका अनुभव किया है कि हमें इस समय सबसे ज्यादा जरूरत चरित्र-गठनकी है। सभी राष्ट्रोंको इसकी आवश्यकता है परन्तु फिलहाल हमें इसकी जरूरत सबसे ज्यादा है। इसके सिवा किसी दूसरी चीजसे हमारा काम नहीं चल सकता। महान् देशभक्त श्री गोखलेका भी यही कहना था। (तालियाँ) आप जानते हैं उन्होंने अपने अनेक भाषणोंमें कहा है कि यदि हमारी माँगके पीछे चरित्र-बल नहीं होगा तो

  1. १. माननीय रेवरेंड जी० पिटेनरिंग, मद्रास क्रिश्चियन कॉलेजकी अध्यक्षता में वाई० एम० सी० ए० ऑडीटोरियममें दिया गया था।
  2. २. यह अनुच्छेद हिन्दू, १६-२-१९१६ से उद्धृत किया गया है।
  3. ३. देखिए “भाषण: गोखले क्लव, मद्रासमें”, २०-४-१९१५।