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भेंट: बनारसकी ‘घटना’ के सम्बन्धमें ए० पी० आई० को

गुंजाइश नहीं है, इजहार कर सकूँ। मुझे, तथा हममें से और भी बहुत लोगोंको इस बातपर बहुत ही लज्जा मालूम हुई कि एक अत्यन्त शरीफ वाइसरॉयकी जानकी हिफाजतके लिए, उस समय जब कि वे इस पवित्र नगरीमें हमारे विशिष्ट और सम्मानित अतिथि थे, असाधारण सतर्कतासे काम लेना जरूरी समझा गया था। मेरे जीवनका लक्ष्य अपने देशके लिए अधिकसे-अधिक स्वतंत्रता प्राप्तिके विचार प्रचारित करना और इसकी प्राप्तिके निमित्त किये जानेवाले कामोंमें मदद पहुँचाना जरूर है, परन्तु किसी भी मनुष्यके प्रति भले ही उस व्यक्तिकी ओरसे हमारे उत्तेजित होनेके अनन्त कारण उपस्थित किये गये हों; हिंसाका प्रयोग करके कदापि नहीं। मेरे भाषणका मुख्य उद्देश्य यह था कि [हमारे देशके] नवयुवकोंके दिलोंमें मेरी यह सलाह घर कर जाये।

[अंग्रेजीसे]
पायनियर, ९-२-१९१६
 

१६८. भेंट: बनारसकी ‘घटना’ के सम्बन्धमें ए० पी० आई० को

फरवरी ९, १९१६

श्री गांधीसे, जो कल तीसरे पहर बनारससे बम्बई पहुँचे, एक संवाददाताने बनारसको उस घटनाका हाल जानना चाहा जिसमें उनको [एक सभामें] अपना भाषण पूरा नहीं करने दिया गया था। श्री गांधीने उत्तरमें कहा कि मुझे न यह मालूम है कि मेरे किन शब्दोंपर आपत्ति उठाई गई थी; और न श्रीमती बेसेंटने ही मेरे भाषणके आपत्तिजनक अंशकी ओर संकेत किया था। उन्होंने तो अध्यक्ष महोदय से केवल इतना ही कहा था कि मुझे और आगे न बोलने दिया जाये। उस दिनकी सभामें दिये गये भाषणके उस अंशमें जो अराजकतासे सम्बन्ध रखता है लगभग वे ही बातें दुहराई गई थीं जिन्हें मैंने गतवर्ष कलकत्तमें श्री लॉयन्सके सभापतित्वमें आयोजित एक सभामें कहा था।[१] श्रीमती बेसेंटके मुझे न बोलने देनेकी बातपर श्रोताओंने मुझसे अपना भाषण जारी रखनेका आग्रह किया, परन्तु मैंने उत्तर दिया कि मैं अब अध्यक्ष महोदयकी अनुमति पानेपर ही बोलूँगा। उस सभामें उपस्थित सज्जनोंसे मैंने श्रीमती एनी बेसेंट द्वारा उठाई गई आपत्तिपर रोष न करनेको――यद्यपि वे ऐसा करनेके इच्छुक हो रहे थे――कहा, और यह भी कहा कि जिस किसीके दिलको मेरे विचारोंसे दुःख पहुँचा हो, उसे अध्यक्षसे इसपर निर्णय माँगनेका हक है।

श्री गांधीने आगे कहा:

महाराजा दरभंगा [अध्यक्ष] से अनुमति पानेपर ही मैंने आगे बोलना शुरू किया था। महाराजाने यह अनुमति कुछ देर तक मामलेपर गौर करके तथा मुझसे

  1. १. देखिए “भाषण: विद्यार्थी भवन, कलकत्ता”, ३१-३-१९१५।