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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नहीं, मैं ऐसा नहीं मानता।” इसपर उसने कहा कि “तो फिर जब कभी आपको मौका मिले आप हम अभागे सिविल-सवेंटोंके पक्षमें लोगोंके सामने दो शब्द कहनेकी कृपा करें।” वे दो शब्द में यहाँ कहनेवाला हूँ। इंडियन सिविल सर्विसके बहुत-से लोग निःसन्देह उद्धत, अत्याचार-प्रिय और अविवेकी होते हैं। इसी तरहके और कितने ही विशेषण उन्हें दिये जा सकते है। यह सब कुछ मुझे स्वीकार है। यही नहीं, मैं यह भी मानता हूँ कि कुछ वर्षों तक हमारे देशमें रहकर वे और भी ओछी मनोवृत्तिके बन जाते हैं। पर इससे क्या सूचित होता है? यहाँ आनेके पहले यदि वे सभ्य और सत्पुरुष थे, पर यहाँ आकर यदि वे नीति-भ्रष्ट हो गये तो क्या इसको हमारे ही चरित्रका प्रतिबिम्ब नहीं कहना चाहिए? (नहीं,नहीं) आप लोग खुद ही विचार करें कि एक मनुष्य जो कल तक भला आदमी था, मेरे साथ रहनेपर खराब हो जाये तो उसके इस अधःपतनके लिए कौन उत्तरदायी होगा? वह या मैन? भारतमें आनेपर खुशामदकी जो हवा उन्हें चारों ओरसे घेर लेती है वही उनके नीतिच्युत होनेका कारण है। ऐसी हालत में कोई भी व्यक्ति नीतिच्युत हो सकता है। कभी-कभी अपने दोष स्वीकार करना भी अच्छा होता है।

यदि किसी दिन हमें स्वराज्य मिलेगा तो वह अपने ही पुरुषार्थसे मिलेगा। वह दानके रूपमें कदापि नहीं मिलनेका। ब्रिटिश-साम्राज्यके इतिहासपर दृष्टिपात कीजिए। ब्रिटिश-साम्राज्य चाहे जितना स्वातंत्र्य-प्रेमी हो, फिर भी स्वतन्त्रता-प्राप्तिके लिए स्वयं उद्योग न करनेवालोंको वह कभी स्वतंत्रता देनेवाला नहीं है। आप चाहें तो बोअर-युद्धसे कुछ शिक्षा ले सकते हैं। कुछ ही वर्ष पहले जो बोअर लोग साम्राज्यके शत्रु थे, वही अब उसके मित्र हैं।

(इस समय फिर गड़बड़ शुरू हुई और श्रीमती बेसेंट उठकर चल दीं। उनके साथ और भी कई बड़े-बड़े लोग उठकर चलते बने। और व्याख्यानका अन्त यहाँ हो गया।)

[अंग्रेजीसे]
स्पीचेज ऐंड राइटिंग्ज ऑफ महात्मा गांधी

१६७. महाराजा दरभंगाको लिखे पत्रका अंश[१]

फरवरी ७, १९१६

वाइसरॉय महोदयके बनारस पधारनेके विषयमें कुछ शब्द कहनेका मेरा उद्देश्य केवल यही था कि हिंसा-मूलक और तथाकथित अराजकतापूर्ण सभी कृत्योंके विरुद्ध मैं अपने उन विचारोंका, जिन्हें में पक्की तौरपर माने हुए हूँ और जिनमें फेरफारकी

  1. १. काशी हिन्दू विश्वविद्यालयके उस समारोह में जिसके अध्यक्ष महाराजा दरभंगा थे, ६ फरवरी १९१६ को गांधीजीने जो भाषण दिया था उसके कुछ विचारोंसे खिन्न होकर उपस्थित राजा-महाराजा और कुछ अन्य लोग भी उठकर चले गये थे तथा सभा भंग हो गई थी। उसी वटनाके विषय में महाराजा दरभंगाको गांधीजीने अपना मंशा स्पष्ट करते हुए जो पत्र लिखा उसका यह अंश पायनियरके “युनिवर्सिटी, ए. रिमार्केवल इन्सिडेंट” शीर्षक एक लेखमें उद्धृत किया गया था।