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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उसी भाषाको प्राप्त होगा जिसमें अच्छे-अच्छे विद्वान् जन्म लेंगे और उसीका सारे देशमें प्रचार भी होगा। यदि तमिलमें अच्छे-अच्छे विद्वान् पैदा होंगे तो हम भी तमिल ही बोलने लग जायेंगे। जिस भाषामें तुलसीदास जैसे कविने कविता की हो वह अवश्य पवित्र है और उसके सामने कोई भाषा नहीं ठहर सकती। हमारा मुख्य काम हिन्दी सीखना है; पर तो भी हम अन्य भाषाएँ भी सीखेंगे। अगर हम तमिल सीख लेंगे तो तमिल बोलनेवालोंको भी हिन्दी सिखा सकेंगे।

महात्मा गांधी
 

१६६. भाषण: बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में[१]

फरवरी ६, १९१६

दोस्तो, यहाँ आते हुए मुझे रास्ते में बहुत देर लग गई। मैं इसके लिए क्षमा-याचना करता हूँ। आप मुझे खुशीसे माफ भी कर देंगे क्योंकि इस देरीके लिए न याचना करता हूँ। आप मुझे खुशीसे माफ भी कर देंगे क्योंकि इस देरीके लिए न मैं जिम्मेदार हूँ न कोई और आदमी (हँसी); सच कहो तो मैं पिंजरेका जानवर हूँ और मेरी देखरेख करनेवाले लोग अत्यधिक ममताके कारण जीवनके एक महत्त्वपूर्ण पहलू अर्थात् शुद्ध संयोगकी बातको भूल जाते हैं। इस बार भी हम लोग, मैं, मेरे निरीक्षक और मुझे उठाकर चलनेवालोंको एकके बाद एक जिन दुर्घटनाओंका सामना करना पड़ा, उसकी पूर्व कल्पना करके तो कोई इन्तजाम नहीं किया गया था; इसलिए इतनी देरी हो गई।

दोस्तो, अभी-अभी जो महिला भाषण देकर बैठी हैं उनकी अद्भुत वाक्शक्तिके प्रभावमें आकर आप लोग कृपया इस बातपर विश्वास न कर लें कि जो विश्व-विद्यालय अभी तक पूरा बना और उठा भी नहीं है वह कोई परिपूर्ण संस्था है; और अभी जो विद्यार्थी यहाँ आये तक नहीं हैं वे शिक्षा-सम्पादन करके यहाँसे एक महान्सा म्राज्यके नागरिक होकर निकल चुके हैं। मनपर ऐसी कोई छाप लेकर आप लोग यहाँसे न जायें, और जिनके सामने आज मैं बोल रहा हूँ वे विद्यार्थीगण तो एक क्षणके लिए भी इस बातको मनमें जगह न दें कि जिस आध्यात्मिकताके लिए इस देशकी ख्याति है और जिसमें उसका कोई सानी नहीं है उस आध्यात्मिकताका सन्देश बातें बघार कर दिया जा सकता है। अगर आपका ऐसा कुछ खयाल हो तो मेहरबानी करके मेरी इस बातपर भरोसा कीजिए कि आपका वह खयाल गलत है। मुझे आशा है कि किसी-न किसी दिन भारत संसारको यह सन्देश देगा; किन्तु केवल वचनोंके द्वारा वह सन्देश कभी नहीं दिया जा सकेगा। मैं भाषणों और तकरीरोंसे ऊब गया हूँ। अलबत्ता पिछले दो दिनों में यहाँ जो भाषण दिये गये उन्हें में इस तरहकी

  1. १. बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के उद्घाटन समारोहपर ४-२-१६ को दिया गया भाषण। भाषणका सम्पादन गांधीजीने बादमें किया और लिखा―― “सम्पादनमें मैंने कुछ ऐसे शब्दोंको हटा दिया है जो मुद्रित अवस्थामें भाषण के प्रवाहमें आड़े आ सकते थे।”