१६५. भाषण: काशी नागरीप्रचारिणी सभामें
फरवरी ५, १९९६
काश्मीरके महाराजाधिराजके सभापतित्वमें काशी नागरीप्रचारिणी सभाके २२वें वार्षिकोत्सवमें श्री गांधीने निम्नलिखित भाषण दिया:
महाराजा तथा भाइयो,
मैं बहुत शरमिंदा हूँ कि आप लोगोंके सामने हिन्दीमें अच्छी तरह नहीं बोल सकता। आप जानते हैं कि मैं दक्षिण आफ्रिकामें रहता था। वहीं अपने हिन्दी भाइयोंके साथ काम करते-करते थोड़ी-बहुत हिन्दी सीख सका हूँ, इसलिए आप लोग मेरी भूलोंको क्षमा करेंगे।
मैं नहीं जानता था कि मुझे इस सभामें बोलना पड़ेगा। मैं व्याख्यान देनेके लायक भी नहीं हूँ। मुझसे कहा गया कि कुछ कहो। यद्यपि कुछ कहना मेरी शक्तिके बाहर है तो भी दो-चार बातें मैं आपको सुनाता हूँ जो इस समय मेरे खयालमें आई हैं। आप शायद यह नहीं जानते कि मेरे साथ तीस-पैंतीस स्त्री-पुरुष हैं। उन सबकी प्रतिज्ञा है कि बराबर हिन्दीका अभ्यास करेंगे। मैंने इस सभाके साथ पत्र-व्यवहार भी किया था। मुझे कुछ पुस्तकें दरकार थीं जो मिल नहीं सकीं। सभाने जो-कुछ किया है उसके लिए उसे धन्यवाद और मुबारकबाद देता हूँ और ईश्वरसे प्रार्थना करता हूँ कि उसके सदस्य बढ़ते चले जायँ। जो पुस्तकें मुझे नहीं मिली हैं वह उन सबको तैयार करानेका प्रयत्न करे। इसके पदाधिकारियोंमें सब एम० ए०, बी० ए०, एलएल० बी० हैं जो अंग्रेजीमें उन पुस्तकोंको पढ़ चुके हैं। इस सभाके जो अधिकारी वकील हैं उनसे मैं पूछता हूँ कि आप अदालतमें अपना काम अंग्रेजीमें चलाते हैं या हिन्दीमें। यदि अंग्रेजीमें चलाते हैं तो मैं कहूँगा कि हिन्दीमें चलायें। जो युवक पढ़ते हैं उनसे भी मैं कहूँगा कि वे इतनी प्रतिज्ञा करें कि हम आपसका पत्र-व्यवहार हिन्दीमें करेंगे।[१]
साहित्य-विहीन जातिको स्वतंत्रता नहीं मिल सकती, इसलिए लोगोंको चाहिए कि वे अंग्रेजीके उच्च विचार और नये खयाल सब लोगोंके सामने रखें। कल डॉक्टर जगदीशचन्द्र बसु व्याख्यान देंगे। यदि वे बँगलामें व्याख्यान देंगे तो मेरा कोई झगड़ा नहीं है, पर यदि वे अंग्रेजीमें दें तो उनसे मेरा झगड़ा है। नागरीप्रचारिणी सभाका कर्त्तव्य है कि जो पुस्तकें डॉक्टर जगदीशचन्द्र बसुने अंग्रेजीमें लिखीं हैं उनका वह हिन्दीमें अनुवाद करे। जर्मनीमें जो विद्वत्तापूर्ण पुस्तकें तैयार होती हैं अंग्रेजीमें दूसरे ही सप्ताह उनका अनुवाद हो जाता है; इसीसे वह भाषा प्रौढ़ है। हिन्दीमें भी ऐसा ही होना चाहिए। लोगोंको अपनी भाषाकी असीम उन्नति करनी चाहिए, क्योंकि सच्चा गौरव
- ↑ १. इलाहाबादके अंग्रेजी दैनिक लीडर के ७-२-१९१६ के अंक में प्रकाशित समाचारमें कहा गया है कि यहाँ गांधीजीने उर्दूका अभ्यास करनेकी बात भी कही थी।