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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

दक्षिण आफ्रिकाकी राजधानी प्रिटोरियामें जनरल बोथा और जनरल स्मट्ससे मिलनेके पहले भेंटकी तैयारीमें उन्होंने जो लगन और सावधानी दिखाई, उसे मैं जन्म-भर नहीं भूल सकता। मुलाकातके पहले दिन उन्होंने मुझसे और श्री कैलेनबैकसे बारीकीसे तमाम पूछताछ की। वे स्वयं सुबह तीन बजे उठ गये और हम दोनों को भी उठा दिया। दिया हुआ साहित्य उन्होंने पढ़ लिया था। अब वे मुझसे तर्क-वितर्क करके यह जान लेना चाहते थे कि मुलाकातकी उनकी तैयारी पूरी हो चुकी है या नहीं। मैंने नम्रतासे कहा, “इतनी ज्यादा मेहनत करनेकी जरूरत नहीं। हमें फिलहाल कुछ नहीं भी मिला, तो हम लड़ लेंगे। परन्तु अपनी सुविधाके लिए हम आपकी बलि देना नहीं चाहते।” किन्तु जिन्होंने अपने सारे कार्योंमें अपनी आत्मा उँडेल देनेकी आदत बना ली हो, वे मेरे इन शब्दोंपर क्यों ध्यान देते? उनके तर्क-वितर्कका मैं क्या वर्णन करूँ? उनकी सावधानीकी मैं कितनी प्रशंसा करूँ? ऐसे परिश्रमका एक ही परिणाम हो सकता था। मन्त्रिमण्डलने महात्मा गोखलेको वचन दिया कि संसदके आगामी अधिवेशनमें एक कानून पास करके सत्याग्रहियोंकी माँग स्वीकार कर ली जायेगी और गिरमिटिया मजदूरोंपर लगाया हुआ तीन पौंडी वार्षिक कर रद कर दिया जायेगा।

इस वचनकी पूर्ति निर्धारित समयपर नहीं की गई। तब क्या महात्मा गोखले चुप बैठे रहे? एक क्षण भी नहीं। मेरा यह विश्वास है कि १९१३ में इस वचनकी पूर्ति करवानेके लिए उन्होंने जो घोर परिश्रम किया, उससे उनकी जीवनावधि कमसे-कम १० वर्ष तो जरूर घट गई होगी। उनके डॉक्टरोंने तो ऐसा ही माना है। उस वर्ष उन्होंने भारतको जगानेके लिए तथा दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहियोंके सहायतार्थ पैसे इकट्ठे करनेके लिए जो कड़ा परिश्रम किया, उसकी कल्पना करना कठिन है। यह महात्मा गोखलेका ही प्रताप था कि दक्षिण आफ्रिकाके प्रश्नने सारे देशको हिला दिया था। मद्रासमें लॉर्ड हार्डिजने जो ऐतिहासिक भाषण[१] दिया था वह भी महात्मा गोखलेका ही प्रताप था। उनसे जिनका घनिष्ट परिचित था वे लोग इस बातको जानते हैं कि दक्षिण आफ्रिकाके प्रश्नकी चिन्तामें बीमार हो जानेपर भी उन्होंने अन्त-तक आराम नहीं किया। दक्षिण आफ्रिकासे आधी रातको पत्रों जैसे लम्बे-लम्बे तार आते, वे उन्हें उसी समय पढ़ते, उसी समय उनके जवाब तैयार कराते, उसी समय लॉर्ड हाडिजको तार भिजवाते और उसी समय उनपर अखबारोंके लिए वक्तव्य देते।

 
  1. १. २४ नवम्बर १९१३ को मद्रास महाजन सभा और मद्रास प्रान्तीय सम्मेलन समितिके मानपत्रोंके उत्तरमें दिया गया भाषण। इसमें उन्होंने कहा था: अभी हालमें आपके दक्षिण आफ्रिकावासी देशबन्धुओंने उन कानूनोंके विरुद्ध, जिन्हें वे विद्वेषजनक और अन्याययुक्त मानते हैं, सत्याग्रह आरम्भ किया है; वे कानूनको अवज्ञा कर रहे हैं। हम, जो उनके संघर्षको दूरसे देख रहे हैं, उनसे सहमत हुए बिना नहीं रह सकते। उन्होंने इन कानूनोंको निश्चयपूर्वक यह जानकर तोड़ा है कि उनको भंग करनेकी सजा क्या है। और वे साहसपूर्वक और धैर्यपूर्वक उस सजाको भुगतनेके लिए तैयार हैं। इस सम्बन्धमें भारत उनसे गहरी सहानुभूति रखता है। उनसे भारत ही नहीं बल्कि वे सब लोग भी सहानुभूति रखते हैं जो मेरी तरह भारतीय तो नहीं हैं, किन्तु जिनकी इस देशके लोगोंके प्रति सहानुभूतिपूर्ण भावनाएँ हैं।