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महात्मा गोखलेका जीवन-सन्देश

  हमारी सत्याग्रहकी लड़ाईसे वे इतने अधिक प्रभावित हुए कि उन्होंने अपना स्वास्थ्य खराब होनेपर भी दक्षिण आफ्रिकाकी यात्रा करनेका निश्चय किया। सन् १९१२ में वे दक्षिण आफ्रिका गये। वहाँके भारतीयोंने उनका राजसी स्वागत किया। वे केपटाउनमें उतरे, उसके दूसरे ही दिन वहाँके टाउन हॉलमें सभा की गई। वहाँके मेयर सभाके अध्यक्ष थे। गोखलेका स्वास्थ्य सभाओंमें भाग लेने और भाषण देने योग्य कदापि नहीं था। लेकिन उनके स्वास्थ्यपर बेहद जोर डालनेवाले जो अनेक कार्यक्रम तय किये जा चुके थे, उन्होंने उनमें कोई परिवर्तन नहीं किया। निश्चित कार्यक्रमके अनुसार वे टाउन हॉलकी सभामें उपस्थित हुए। पहली ही बार उन्होंने गोरोंके मन जीत लिये। सबके मनपर यह छाप पड़ी कि कोई दिव्य पुरुष दक्षिण आफ्रिकामें आया है। श्री मेरीमैनने,[१] जो दक्षिण आफ्रिकाके महान् नेता माने जाते हैं और जो उदार-चित्त और चरित्र-शील पुरुष हैं, गोखलेके साथ अपनी मुलाकातमें उनसे ये शब्द कहे थे: “महोदय, आप-जैसे पुरुषोंके हमारे देशमें आनेसे हमारे देशका वातावरण पवित्र होता है।”

महात्मा गोखले अपने प्रवासमें ज्यों-ज्यों आगे बढ़े, त्यों-त्यों यह अनुभव दृढ़से दृढ़तर होता गया। कुछ समयके लिए तो कई जगह गोरे और कालेके बीचका भेद मिट गया। हर जगह केप टाउन-जैसी सभाएँ हुईं। गोरे और भारतीय उनमें एक कतारमें बैठते और महात्मा गोखलेको समान मान देकर गौरवान्वित होते। जोहानिसबर्ग में उनके सम्मानमें एक दावत दी गई थी। उसमें लगभग ३०० प्रसिद्ध गोरे आये थे। अध्यक्ष-पद वहाँके मेयरने ग्रहण किया था। जोहानिसबर्गके गोरे किसीके तेजसे चौंधियानेवाले नहीं हैं। उनमें से कुछ लोग करोड़पति होनेके साथ-साथ मनुष्योंको पहचाननेवाले भी हैं। वे महात्मा गोखलेके साथ हाथ मिलानेमें परस्पर स्पर्धा-सी करते थे। इसका कारण एक ही था। श्रोतावर्गने महात्मा गोखलेके भाषणमें भारतके प्रति उनके अपार प्रेमके साथ-साथ उनकी न्यायदृष्टि भी देखी। उन्होंने देखा कि वे अपने देशके प्रति मान-सम्मान तो पूरा-पूरा चाहते हैं, लेकिन दूसरे देशके प्रति अपमान नहीं चाहते। अपने देशके बारेमें अधिकारोंकी रक्षाके लिए वे जितने तत्पर थे, उतनी ही उनकी यह आकांक्षा भी थी कि ऐसा करते हुए दूसरे देशके अधिकारोंको धक्का न पहुँचे। इस कारण उनके भाषणोंमें सबको स्वाभाविक माधुर्यका अनुभव होता था।

महात्मा गोखले स्वयं यह मानते थे कि दक्षिण आफ्रिका में उनका सबसे अच्छा भाषण[२] जोहानिसबर्ग में हुआ था। भाषणने पौन घंटेसे भी अधिक समय लिया। फिर भी श्रोताओं में से कोई ऊब उठा हो, ऐसा मुझे नहीं लगा। उन्होंने इस भाषणकी तैयारी छः दिन पहले शुरू कर दी थी। उन्होंने आवश्यक इतिहास और आवश्यक आँकड़ोंको जाननेके बाद भाषण देनेसे एक दिन पहले रातको जागकर उसकी भाषा भी ठीक कर ली। परिणाम वह हुआ जो मैंने बताया। उनके भाषणसे गोरों और उनके देशभाइयों ――दोनोंको संतोष हुआ।

 
  1. १. (१८४१-१९२५); दक्षिण आफ्रिका संघ-विधान परिषदके सदस्य।
  2. २. सन् १९१२ में।