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१६१. पत्र: सोंजा इलेसिनको[१]

अहमदाबाद
जनवरी १६, १९१६

प्रिय बेटी,

तुमने आखिर मेहरबानी करके पत्र लिखा। मेरा सालमें छः पत्र लिख भेजना तुम्हारी निगाहमें कोई बड़ी बात नहीं है। क्या तुम लिखती हो? खैर जितने भी लिख दो उन्हींको गनीमत समझूँगा।

श्रीमती बेसेंटके संवाददाताने यह लिखा है कि मैंने बेतुकी और बेढंगी बातें कह डाली थीं, परन्तु तुम्हें कमसे-कम इतना तो कहना था कि गांधीने ऐसी कोई बात नहीं कही। उस निन्दापूर्ण विवरणको [दूसरे पत्रोंसे लेकर] प्रकाशित करनेकी भूलके कारण नटराजननें[२] क्षमा याचना की थी। जो-कुछ मैंने कहा था उसका मतलब बिलकुल दूसरा था। मैंने अपने इस कथनके समर्थनमें कि पुरुष अपनी काम-वासनाकी तृप्तिके लिए स्त्रीका उपयोग करके उसके प्रति सदा अन्याय करता रहता है, एक गुजराती कहावत सुनाई थी।

क्रोधके बारेमें मेरे द्वारा जिस प्रकारका व्रत लिये जानेका उल्लेख तुमने मेरे सम्बन्धमें किया है, वह सत्य है। और यदि मैंने ऐसा व्रत लिया होता तो, तुम्हारे इस खयालसे मैं सहमत हूँ कि दूसरोंपर जाहिर हो जानेके कारण उसका महत्त्व जाता रहता।

मेरी व तुम्हारी राय इस सम्बन्धमें एक जैसी है कि पोलकने जो काम गत १८ महीनोंमें किया है वह उनके भारतमें किये गये कामसे भी बढ़-चढ़कर है। यदि थम्बी[३]आते तो मुझे अवश्य प्रसन्नता होती। परन्तु सत्याग्रह-कोषकी रकमसे उनका ऋण चुकाना उचित नहीं है।

जेकी अपने पिताके साथ रहती है। घरके काम-काजमें वह बिलकुल रम गई है।

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें लिखित अंग्रेजी मसविदे (एस०एन० ६२६२) की फोटो-नकलसे।

 
  1. १. सोंजा श्लेसिन; एक यहूदी स्टेनो-टाइपिस्ट, जिन्होंने अनेक वर्षौंतक गांधीजीके निजी सचिवको तरह काम किया; बादमें वे इंडियन ओपिनियन के लिए भी लिखने लगी थीं। भारतीय प्रश्नके प्रति उनके दिलमें गहरी दिलचस्पी थी।
  2. २. कामाक्षी नटराजन: सम्पादक, इंडियन सोशल रिफॉर्मर, बम्बई।
  3. ३. नायडू, दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रह-संघर्षके दिनोंके एक प्रमुख सत्याग्रही।