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१५६. भाषण : सूरतके मुहम्मडन असोसिएशनमें[१]

जनवरी ३, १९१६

इस समारोहसे मुझे दक्षिण आफ्रिकाकी याद आ जाती है। वहाँ हिन्दू, पारसी और मुसलमान सभी एक हो गये थे। मैं भारतमें सभी स्थानोंमें घूमा हूँ। इस भ्रमणमें मैंने हिन्दुओं और मुसलमानोंके बीच जो भाईचारेकी भावना देखी, वह मुझे यहाँ सूरत में भी दिखाई देती है। यहाँ मुझे अपने दक्षिण आफ्रिकाके पुराने साथी मिले। इनमें से अब्दुल कादिर बावजीरने मेरे साथ रहकर बहुत कष्ट उठाये थे। मैं इस सम्बन्धमें बोलूँ तो बहुत समय निकल जायेगा, किन्तु इतना समय है नहीं। इसलिए मैं आपको संक्षेपमें यह बताऊँगा कि मैं जब भारतमें आया तब मेरी इच्छा यह थी कि मैं हिन्दू जाति और मुसलमान जातिकी सेवा समान रूपसे करूँ। हमें भारतमें जो काम करने हैं वे तभी सफल होंगे जब यह समझा जाने लगेगा कि हिन्दू, मुसलमान और पारसी भाई सभी एक हैं, बड़ी जातियोंको झगड़ना नहीं चाहिए। ऐसा समझ लिया जाये तो अधिक अच्छा हो। दोनों जातियोंके नेताओंको यह समझना चाहिए कि वे एक ही जातिके हैं और वैसा समझकर तदनुसार आन्दोलन करना चाहिए। इन जातियोंमें भाईचारा बढ़नेसे आपकी उत्साह-वृद्धि हो सकेगी। दक्षिण आफ्रिकामें हिन्दू और मुसलमान भाई-भाईकी तरह रहते हैं। यदि कोई उचित संघर्ष आरम्भ किया जाये तो उसमें समाज बिना किसीके सहयोगके भी जीत सकता है। खुदाका नाम-भर लेनेसे हमारा उद्धार हो सकता है। यदि हम दोनों जातियोंके लोग हिलमिलकर चलेंगे तो हमें जो कुछ मिलना चाहिए वह हमें अवश्य ही मिलेगा। इसलिए हमें मनमें डर रखकर नहीं, बल्कि सदा समभाव रखकर चलना है। अन्तमें मैं मानपत्रमें और मौखिक रूपसे की गई प्रशंसाके लिए आभार मानता हूँ और चाहता हूँ कि में हिन्दू और मुस्लिम जाति-में कोई भेद न मानूँ एवं ईश्वर मुझे ऐसी सद्बुद्धि दे कि मैं इन दोनों जातियोंकी सेवा करता रहूँ। में यह भी चाहता हूँ कि इसके लिए आप भी यही प्रार्थना करें।

[गुजरातीसे]

गुजरात मित्र अने गुजरात दर्पण, ९-१-१९१६

 
  1. १. सैयदपुरा मुहम्मडन असोसिएशन और इस्लामिया पुस्तकालय द्वारा भेंट किये गये मानपत्रके उत्तरमें।