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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है। गरीबी आनेसे लोग भीरु हो जाते हैं; इसलिए वे सिपाही-जैसे छोटे राज-कर्म- चारीसे भी डरते हैं। आज भारतमें भयकी स्थिति ऐसी है कि बेटा बापसे और बाप बेटेसे भयभीत रहता है। इस स्थितिके निवारण के लिए यथार्थ ज्ञान उत्पन्न किया जाना चाहिए। मुझे यह ज्ञान सन् १८९६ में स्वर्गीय श्री गो० कृ० गोखलेकी सलाहसे मिला था। सूरत वीरोंका नगर है। वह नर्मद[१] कविके आशीर्वादसे अमर है। इस नगर-पर आग और बाढ़के अनेक बार संकट आये हैं। फिर भी यह निष्पक्ष होकर चल रहा है। इसी सूरत नगरसे गये हुए श्री अहमद मुहम्मद[२] और सोराबजी शापुरजी[३] दक्षिण आफ्रिकामें बहुत ही वीरतापूर्वक लड़ते हुए अनेक बार जेल गये थे; किन्तु फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। ऐसे-ऐसे वीर लोग सूरतके ही हैं। इस सूरत नगरके प्रति मेरे मनमें बहुत आदर-भाव है। मैं जब भारतमें आया तब मैं सर्वप्रथम सूरत ही आनेवाला था, किन्तु कुछ अकल्पनीय संयोगोंके कारण यहाँ नहीं आ सका। आज सूरतके लोगोंने मेरे ऊपर जो प्रेम-वर्षा की है उसके लिए मैं उनका अत्यन्त आभारी हूँ। मैं आशा करता हूँ कि जब-जब मुझे आपसे काम पड़ेगा तबतब आप मेरे प्रति ऐसा ही प्रेम दिखायेंगे और मुझे सहायता देंगे। मैं जो कुछ कमाकर लाया हूँ उस सबको यहाँ खर्च नहीं करूँगा। क्योंकि मैं बनिया हूँ। मैंने यह कमाई जहाँ की है इसे वहींकी भलाईके लिए खर्च करूँगा। मैं आपसे अपने लिए धन नहीं माँगता। मैं आपसे अगर कुछ माँगता हूँ तो वह स्वर्गीय श्री गोखलेके स्मारकके निमित्त बनाये कोषमें देनेके लिए। मैं काठियावाड़के नगरोंमें से तेरह-चौदह हजार रुपया इकट्ठा कर लाया हूँ। सूरत नगरसे भी मुझे एक अच्छी रकम मिलनेकी आशा है। जहाँतक मैंने सुना है, इस सम्बन्ध में सूरतने कुछ नहीं किया है। मैंने आज जिला-जज श्री अडवानीसे भेंट की थी और इस सम्बन्धमें चर्चा की थी। उन्होंने बताया, इस सम्बन्धमें यहाँ अभीतक कुछ नहीं किया गया है। किन्तु यदि कुछ किया जाये तो अच्छा हो। मैं इस कार्यको बढ़ावा देना चाहता हूँ और इसमें अपनी ओरसे ५० रुपयेकी रकम देता हूँ। यह काम कितना उपयोगी है, यह बात आप सभी लोग जानते हैं। श्री गोखले अपने पीछे हमें जो कुछ विरासतमें दे गये हैं उसको कायम रखना आवश्यक है। इसीलिए छोटे-बड़े सभी जिसे जितना उचित लगे उतनी रकम इस कोषमें दें। सूरतके सम्बन्धमें कहा गया है कि वह सुस्त है; किन्तु जब वह जग जाता है तो दूसरा कोई नगर जितना कर सकता है उतना कर दिखाता है। अन्तमें सूरतके लोगोंने मेरे प्रति जो प्रगाढ़ प्रेम दिखाया है उसके लिए एक बार फिर उपकार मानता हूँ और अपना स्थान ग्रहण करनेकी अनुमति चाहता हूँ।

[गुजरातीसे]

गुजरात मित्र अने गुजरात दर्पण, ९-१-१९१६

 
  1. १. गुजरातके प्रथम आधुनिक कवि नर्मदाशंकर लालशंकर दवे।
  2. २. काछलिया।
  3. ३. अडाजानिया; पारसी समाजसेवक और सत्याग्रही जो दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहमें जेल गये और निर्वासित किये गये, देखिए खण्ड ११, पृष्ठ ६, पा० टि० १।