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१५४. भाषण: सूरत आर्यसमाजके उत्सवमें[१]'

जनवरी ३, १९१६

भाइयो और बहनो,

मुझे आज यहाँ दो बजे पहुँचना था, किन्तु मैं उस समय नहीं पहुँच सका। आप इसके लिए मुझे क्षमा करें। मैं जहाँ जाता हूँ, मेरी स्थिति विषम हो जाती है। एक या दो दिन ही मेरा मुकाम होता है, इसी समयमें मुझे बहुतसे लोगोंसे मिलना होता है और बहुत-सी जगहें देखनी होती हैं; इसलिए मैं सदा वक्तकी पाबन्दी नहीं रख पाता। फिर मैं किसीसे मिलनेसे इनकार भी नहीं कर सकता। कल मुझे एक विषयपर भाषण देनेके लिए कहा गया था; किन्तु उस विषयपर बोलना ठीक नही लगा। आज भी मुझे उसी विषयपर बोलनेके लिए कहा गया है इसलिए आपकी इच्छाके अनुसार मैं उसीपर जो थोड़ेसे विचार व्यक्त कर सकूँगा, आपके सामने रखूँगा। भारतमें हमें आज सभी लोग भयभीत दिखाई देते हैं, यहाँ तक कि बाप बेटेसे और बेटा बापसे खुलकर बातचीत नहीं कर सकता। इसीलिए आज सच बोलना कठिन हो गया है। जबतक भयकी यह स्थिति रहती है तबतक सत्य बोलना कठिन है। प्रत्येक व्यक्तिको सदा यही भय बना रहता है कि उसकी बात दूसरे व्यक्तिको प्रिय लगेगी या नहीं। यह स्थिति जबतक कायम रहेगी तबतक सत्य नहीं बोला जा सकता। जबतक भयकी यह स्थिति है तबतक हम पिछड़े हुए ही रहेंगे और हमें उसके दुष्परिणामोंका ही सामना करना होगा। वर्तमानव वातावरणको देखते हुए ऐसा जान पड़ता है कि लोग कुछ करनेके लिए उत्सुक हैं। किन्तु यह कुछ क्या हो? मुझे कहना चाहिए कि कोई भी काम करो, उसमें आनेवाले कष्ट तो सहने ही होंगे; किसी कामको हाथमें लेनेसे पूर्व हमें यह निश्चय करना होगा कि हमें किस मार्गका अव लम्बन करना चाहिए। और तब हमें निर्भय होकर उस मार्गपर चल पड़ना चाहिए। हमें तो एक सिपाहीसे भी भय लगता है। हम स्टेशन मास्टरसे भी डरते हैं। हमें यह डर क्यों लगता है? वे अधिकारी अवश्य हैं; किन्तु एक तरहसे देखें तो वे हमारे नौकर हैं, क्योंकि वे लोगोंके पैसेसे नौकर रखे गये हैं। तब हमने जिन्हें नौकर रखा है उनसे हमें डरना किसलिए चाहिए? भीरुताका यह आरोप निडर हुए बिना नहीं हटेगा। सच कहें तो डरनेवाला व्यक्ति स्वयं ही डरता है; उसको कोई डराता नहीं है। यदि आप बाघ जैसे हिंस्र पशुके सम्मुख निडर होकर खड़े हो जायें तो वह आपके साथ खेलने लगेगा; किन्तु यदि आप डरकर भागें तो वह आपको मार डालेगा। उदाहरणार्थ, यदि आप कुत्तेके भौंकनेपर भागेंगे तो वह आपके पीछे लगेगा और यदि निडर होकर उसके सम्मुख खड़े हो जायें तो वह दुम हिलाने लगेगा। वास्तवमें देखें तो अधिकारी हमारे नौकर हैं। उनसे हमें डरना नहीं चाहिए। किन्तु साथ ही उनसे

  1. १. उत्सवके दूसरे दिन।