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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

विचार करना आवश्यक है। यदि मैं आपसे यह कहूँ, ऐसा करना चाहिए और ऐसा ही करो तो यह मेरी धृष्टता होगी। इसके अतिरिक्त केवल कहनेसे उसपर अमल नहीं होता। इसलिए मैं आपसे आज जो-कुछ कहता हूँ वह तो केवल अपने अनुभवकी बात कहता हूँ। अतः मेरी विनम्र प्रार्थना है कि इसमें जो सत्य हो आप उसीको स्वीकार करें। आप पाश्चात्य देशोंका अनुकरण करें, इसकी अपेक्षा तो यह अधिक लाभप्रद होगा कि वे जो कुछ आपके सम्मुख रखें, आप उसको अस्वीकार कर दें। यदि आप विचार करेंगे तो आपको पता चलेगा कि यूरोपमें लोगोंको हमारे देशकी तरह भाषण सुननेका अवकाश नहीं है। उन्होंने जितनी उन्नति की है उतनी उन्नति करनेके लिए हमें सरकारसे कुछ अधिकार माँगने और लेने होंगे। इन अधिकारोंको प्राप्त करनेके लिए हमें संघर्ष करनेकी आवश्यकता होगी। इस समय आप लोग मुझे जो सम्मान दे रहे हैं वह, मैंने भारतीयोंके अधिकारोंकी प्राप्तिके लिए सरकारसे जो संघर्ष किया था और उस सम्बन्धमें जो कष्ट उठाये थे, उनको दृष्टिमें रखकर दिया जा रहा है; और मैं यह बात जानता हूँ। इन अधिकारोंकी प्राप्तिके लिए हमें योग्य बननेकी आवश्यकता है। इसलिए आप उनके योग्य बननेके लिए पढ़ें, उनपर विचार करें और फिर उनका अनुसरण करके, सचाईके रास्तेपर चलते हुए सरकारसे लड़नेके योग्य बनें। यदि इस कर्तव्य-पालनमें इस समाजके प्रतिनिधि पहल करेंगे तो यह बहुत लाभप्रद बात होगी। यह कहकर मैं आपसे अपना स्थान ग्रहण करनेकी अनुमति लेता हूँ।

अपने बादके वक्ताओंके भाषणोंमें कही गई कुछ बातोंका उत्तर देते हुए गांधीजीने कहा:

आज आपने मेरी एक छोटीसी प्रार्थनाको मानकर लम्बे-लम्बे भाषण न देकर मेरे लिए बहुत सुविधा कर दी है; किन्तु इतना ही काफी नहीं है। यदि आप मुझे यह आश्वासन देंगे कि आप सदा ऐसा ही करेंगे तो मुझे अधिक प्रसन्नता होगी। पण्डित रामचन्द्रने अपने भाषणमें मुझसे एक गम्भीर प्रश्न किया है। उन्होंने मुझसे यह बतानेका अनुरोध किया है कि आर्यसमाजका कार्यक्रम किस प्रकार अधिक उपयोगी और लोकप्रिय बनाया जा सकता है। यह प्रश्न यहीं नहीं उठाया गया है। मैं जब हरद्वारमें था

तब भी इस प्रश्नपर चर्चा की गई थी। इस समय इतना समय नहीं है कि मैं इस प्रश्नका उत्तर दे सकूँ, इसलिए यदि पण्डितजी अहमदाबादमें मेरे स्थानपर आयें तो मैं उनसे इस विषय में विचार-विमर्श करूँगा। इसी प्रकार इस मामलेमें जो विरोधी हैं उनकी राय भी लेनी होगी। मेरे स्वर्गीय गुरु श्री गोखलेने मुझे यह स्पष्ट आदेश दिया था कि मैं ऐसे विवादोंमें न पडूं, इसलिए मैं इस विवादमें नहीं पड़ता। किन्तु यह विवाद किसी दूसरेका नहीं है। मैं इस समाजके लोगोंको अपना मित्र मानता हूँ, इसलिए मुझे उन्हें सलाह देनी है। मैं धन और निहाईके बीच ठुक-पिटकर निकला हूँ, इसलिए अपना अनुभव अपने मित्रोंको बताना मेरा धर्म है। हमें भारतकी उन्नतिके लिए दिन-प्रतिदिन प्रयत्न करते रहना चाहिए।[१]

 
  1. १. गुजरात मिन्न अने गुजरात दर्पणसे।