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भाषण : सूरत आर्यसमाजके वार्षिकोत्सव में

करनेसे मिलेगा। में कांग्रेसमें और हरद्वारमें जहाँ भी गया, मैंने इस सम्बन्धमें चर्चा की है एवं आज जब यहाँ आपके सम्मुख बोलनेका अवसर मिला है, उसी बातको फिर आपके सम्मुख रखा है। मुझे जहाँ भी बोलनेका अवसर मिलता है वहाँ मैं अपनी बात संक्षेप में ही कहता हूँ और आगे भी संक्षपमें ही कहूँगा। इसीलिए मैं अन्य वक्ताओंसे निवेदन करता हूँ कि वे भी ऐसा ही करें। सम्मेलनोंमें भाषणोंके लिए सात-सात घंटेका कार्यक्रम रखा जाता है। यदि यहाँ एकत्रित लोगोंको एक-एक कुदाली और फावड़ा दे दिया जाये और उनसे उतने ही समय तक वहाँको जमीन खुदवाकर उसमें कुछ बो दिया जाये तो अगले वर्ष निश्चय ही अच्छी फसल होगी। यदि मैं आर्यसमाजके प्रतिनिधियोंको शहरमें ले जाऊँ और वहाँकी गन्दी जगहोंको उनसे साफ करवाऊँ तो सूरतके लोग उन्हें अवश्य ही धन्यवाद देंगे। हम पाश्चात्य लोगोंको देखते हैं कि वे भाषण देनेकी अपेक्षा काम करनेका अधिक प्रयत्न करते हैं। यदि आप लोग उनका अनुकरण करना चाहते हैं तो आप उनके गुणोंका अनुकरण करें। आप ऐसा करेंगे तो बहुत कुछ सीख सकेंगे। किन्तु यदि आप उनके विदेशी आचार-विचार ग्रहण करेंगे तो आप औंधे मुँह गिरेंगे। यदि हम आजका कार्यक्रम सात घंटेके बजाय चार घंटेका कर लें और इस प्रकार बचे हुए तीन घंटोंका उपयोग किसी कर्त्तव्य-कर्मके करनेमें लगायें तो यह अधिक उपयोगी होगा। यदि केवल भाषण सुननेसे कोई काम होता हो और हमारे कष्ट दूर होते हों तब तो फिर अनेक स्थानों में भागवतका पारायण होता है और उसे सुननेके लिए भी बहुतसे श्रोता जाते हैं। किन्तु प्राय: कई लोग वहाँ बैठे-बैठे ऊँघते रहते हैं। यदि केवल सुननेसे सब कुछ मिल जाये तो फिर अन्य कुछ कर्त्तव्य-कर्म करनेकी आवश्यकता नहीं रहती। ब्राह्मण कथा-पुराण बाँचते हैं उसीसे हमारा उद्धार हो जाये । इस प्रकार भारतके लोगोंको सुनने-सुनाने और अपना बखान करनेका बहुत चाव है। इसमें वे बिलकुल बौरा जाते हैं। इसके बजाय यदि मौन रखा जाये तो उससे बहुत-कुछ प्राप्त किया जा सकता है। [केवल] बोलनेसे किसी तरह भी गहरा विचार नहीं हो सकता। किन्तु यदि आप कोई कार्य करें तो उसपर कुछ-न-कुछ चर्चा होगी और उसमें से लोग सार-असार ग्रहण कर सकेंगे। इसलिए मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ कि आप कृपा करके प्रत्येक उपलब्ध क्षणका उपयोग कर्त्तव्य-कर्म करनेमें करें। एक महात्माने कहा है कि यदि कभी आपके मस्तिष्कमें एक साथ बहुतसे विचार उत्पन्न हों तो उनसे भ्रमित न हों। आप उनपर तुरन्त अमल न करें। उन्हें एक रात मनमें डाले रहें और उनपर मनःपूर्वक अच्छी तरह तर्क-वितर्क करें एवं उसके बाद जो निकम्मे जँचें उन्हें छोड़कर बाकीके सम्बन्धमें अपनी पत्नीसे वाद-विवाद और विचार-विनिमय करें। इस प्रकार जो विचार निकम्मे हों उन्हें काट-छाँटकर अलग कर लें और अन्तमें जो विचार शेष रहे उसे अपने अन्तःकरणसे परख कर यदि सत्य लगे तो उसपर अमल करें और संसारके सम्मुख रखें। उसपर अमल करते समय आपके ऊपर चाहे जितने प्रहार किये जायें, आप डरें नहीं। इस प्रकार परिपक्व विचार-ही अमलके योग्य हो सकता है। परिपक्व विचारको अमलमें लानेसे व्यर्थ समय नष्ट नहीं होता। मैं विनयपूर्वक कहूँगा कि प्रत्येक कार्यको प्रारम्भ करनेसे पूर्व उसपर