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डायरी: १९१५

मार्च ३१, बुधवार

विद्यार्थियोंसे दो शब्द।[१]श्री लायन अध्यक्ष थे। बोलपुर रवाना। मारवाड़ियोंने बोलपुर जानेके लिए ३०० रुपये दिये। रातको बोलपुर पहुँचा। प्राणलाल मेरे साथ आया।

अप्रैल १, बृहस्पतिवार, वैशाख बदी १

एक बीमार लड़केको देखने गया। ऐन्ड्रयूजकी कष्टमय स्थिति समझी। गुरुदेवके साथ मुलाकात।

अप्रैल २, शुक्रवार

ऐन्ड्रयूजके सम्बन्धमें गुरुदेवसे बातचीत। बादमें शिक्षकोंके साथ। अन्तमें शिक्षकों के सम्मुख ऐन्ड्रयूजसे बातचीत। कुँजरूकी ओरसे तार कि हम सबको ५ तारीख तक हरद्वार पहुँच जाना चाहिए। नेपाल बाबुकी सार-संभाल।

अप्रैल ३, शनिवार

गुरुदेवकी अध्यक्षतामें लड़कोंके साथ अन्तिम बार बातचीत। मगनलाल तथा रामदासको बोलपुरमें रसोईके काममें मदद देनेके लिए रखा। बाकीको लेकर हरद्वारके लिए रवाना। शंकर पण्डित साथ आये।

अप्रैल ४, रविवार

रेलगाड़ी में।

अप्रैल ५, सोमवार

शामको हरद्वार पहुँचा। सरवननाथके बगीचेमें ठहरे। काली-कमलीवाले बाबा रामनाथसे मुलाकात।

अप्रैल ६, मंगलवार

सवेरे गुरुकुल देखने गया। एक स्वयंसेवक साथ आया। महात्माजीसे भेंट। उनको बैलगाड़ी में वापस आया। जमनादास मेरे साथ था, वह गुरुकुलमें रुक गया। लड़के ऋषिकेश गये। अखंडानन्द, पडियार आदि मिले। मुलजी, तापीदास―गुरुकुलमें।

अप्रैल ७, बुधवार

ऋषिकेश गया। लक्ष्मण झूलेकी यात्रा। लटकता पुल देखा। स्वर्गाश्रम देखा। अनेक विचार आये। मंगलनाथजी से मुलाकात। शिखासूत्रके[२] विषयमें चर्चा। स्वामी नारायणसे भेंट।

अप्रैल ८, बृहस्पतिवार

ज्वालापुर महाविद्यालय देखने गया। हिन्दू सभा देखी। ऋषिकुलके दर्शन। गुरुकुलके विद्यार्थियोंकी ओरसे अभिनन्दन।[३] रावजीभाई आये। कोतवाल भी आये।
  1. १. देखिए “भाषण: विद्यार्थी-भवन, कलकतामें”, ३१-३-१९१५।
  2. २. देखिए आत्मकथा, भाग ५, अध्याय ७ (द्वितीय आवृत्ति)।
  3. ३. देखिए “गुरुकुल काँगड़ीमें दिये गये मानपत्रका उत्तर”, ८-४-१९१५।