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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अन्तर्गत आ जाती है, इसलिए यह समझता हूँ कि इसमें उसकी सेवा भी आ गई। आप इस समय मेरे प्रति अनुपम प्रेम दिखा रहे हैं, किन्तु भाइयो, स्मरण रखें कि जब मैं कोई ऐसा कार्य करूँ जो आपको पसन्द न हो तब आप उसमें विघ्न न डालें। मैं उस स्थितिमें भी आपके आशीर्वादका भूखा रहूँगा। [चाँदीकी] तश्तरी और गुलदस्ता लेते हुए उन्होंने कहा : खेदकी बात है कि मेरे मित्र भी मुझे नहीं पहचानते। मैं ऐसी, चाँदी की चीज, साथ नहीं रख सकता। क्योंकि में अपरिग्रहके नियमको पालता हूँ। यदि में इन्हें अपने साथ रखूँगा तो इन्हें चोर चुराने आयेगा और तब मुझे इनकी रक्षा करनेके लिए हिंसा करनी पड़ेगी। उससे मेरी अहिंसाका नियम भंग होगा। इसलिए में तो इन्हें गलवा कर इनका पैसा आश्रमके लिए प्रयुक्त करूँगा। मैं सब सज्जनोंका और जाति- बन्धुओंका आभार मानता हूँ।

[गुजरातीसे]
प्रजाबन्धु, १९-१२-१९१५

१४१. भाषण: बगसरामें[१]

दिसम्बर १२, १९१५

मोहनदास करमचन्द गांधी आज १२ तारीखको बगासरा पहुँचे। वे हडाला होकर अमरेली से आये थे। उनके साथ हडालाके दरबार वाजसुरवाला, जैतपुर के बैरिस्टर देवचन्द उत्तमचन्द, उनके पुत्र और राजकोटके एक अन्य व्यक्ति भी थे। वकील छगनलाल गोर्धनने गांधीजीको मानपत्र भेंट किया।

गांधीजीने उत्तर में कहा कि वे अब सरकारसे वीरमगाँवकी चुंगी-व्यवस्थाको रद करानेका शक्ति-भर प्रयत्न करेंगे।[२]जाहिरा तौरपर उनके काठियावाड़के दौरेका कारण गोखले- स्मारक कोषके लिए चन्दा इकट्ठा करना था। उन्होंने सभामें कोई २५० रुपये इकट्ठे किये।

गांधीजी १५ सितम्बरको वडवान शहर और कैम्पमें गये । वहाँ उन्होंने सभाओं में भाषण दिये और कोषमें चन्दा माँगा, वे उसी दिन १-१५ बजे दोपहरके बादकी गाड़ीसे ध्रांग्ध्रा गये।

[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे सीक्रेट एब्सट्रैक्ट्स १९१६, पृष्ठ १५
 
  1. १. रतिलाल मोतीचन्दकी जिनिंग और वीविंग फैक्टरीमें आयोजित एक समामें, जिसमें बगासर के अधिकांश लोग आये थे।
  2. २. देखिए “भाषण: वीरमगाँवकी चुंगी नाकावन्दीपर”, २३-१०-१९१६ भी।