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१३९. भाषण: भावनगरमें गोखले-स्मारक-कोषके लिए[१]

दिसम्बर ८, १९१५

भावनगरके लोगोंने कल और आज जो अपूर्व उत्साह दिखाया गांधीजीने उसपर बड़ी प्रसन्नता प्रकट की और उसके लिए हृदयसे लोगोंका आभार माना। उन्होंने विद्यार्थियों और युवकोंको बोधप्रद उपदेश दिया और भावनगरके लोगोंसे अपने स्वर्गीय गुरु माननीय श्री गोपाल कृष्ण गोखलेके स्मारक कोषमें धन देनेकी अपील की। साथ ही उन्होंने भारत सेवक समाज (सवॅट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी) के उद्देश्य बताये और उससे देशको होनेवाले लाभोंकी चर्चा की। उन्होंने आगे कहा:

चार मास पूर्व मुझे यहाँ आनेके लिए भावनगरके लोगोंका निमन्त्रण मिला था। किन्तु उस समय कुछ विशेष स्थितियोंके कारण मैं नहीं आ सका। किन्तु मैं अब जब यहाँ आया हूँ तब मुझे लगता है कि उस समय यहाँ न आनेसे मेरे यहाँ आनेके उद्देश्योंकी हानि नहीं हुई, बल्कि लाभ ही हुआ है। उस वक्त यहाँ सर प्रभाशंकर पट्टणी मौजूद न होते; और आज जब मैं यहाँ आया हूँ तब वे यहाँ मौजूद हैं। यहाँ आनेपर उन सरीखे लोकप्रिय प्रशासकके शुभ करोंसे मुझे यहाँके लोगोंका मानपत्र ग्रहण करनेका सम्मान प्राप्त हुआ। इतना ही नहीं, मुझे पूर्ण विश्वास है कि स्वर्गीय माननीय श्री गोखलेके स्मारककोषमें भी, खास तौरसे में जिसके लिए यहाँ आया हूँ, अधिक उपलब्धि होगी।

[गुजरातीसे]
प्रजाबन्धु, १२-१२-१९१५
 

१४०. भाषण: भावनगरमें[२]

[दिसम्बर ९, १९१५]

आज मेरे जाति-बन्धुओंने मुझे यहाँ बुलाकर मेरे प्रति जो प्रेम प्रकट किया है, उसके लिए मैं सबका आभारी हूँ। जब मैं बम्बईमें जहाजसे उतरा था तब वहाँ भी मेरे मोढ़-बन्धुओंने मेरे प्रति प्रेमकी ऐसी ही अभिव्यक्ति की थी। मैं इस प्रेमके योग्य नहीं हूँ, क्योंकि मुझसे मोढ़ जातिकी कोई सेवा नहीं बन सकी। यहाँ तक कि कभी-कभी मेरे स्नेही और जाति-बन्धु मुझसे पूछते हैं, आपने मोढ़-जातिकी क्या भलाई की है? वे आक्षेप करते हैं: “आप स्वधर्म छोड़कर परधर्मपर चल रहे हैं।” मैं उन्हें केवल यही उत्तर देता हूँ कि मैं यथाशक्ति देशकी सेवा करता हूँ और चूँकि जाति उसके

  1. १. राज्यके दीवान सर प्रभाशंकर पटटणीकी अध्यक्षता में दिये गये मानपत्रका उत्तर देते हुए।
  2. २. मोढ़ जाति द्वारा दिये गये मानपत्रके उत्तरमें।