पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 13.pdf/१८३

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१५१
भाषण: वीरमगाँव में

शराबी हो जाते हैं, स्त्रियाँ भी जो भारतमें बिलकुल शराब नहीं पीती, जराब पिये हुए नशे में होश-हवास खोकर कई बार सड़कोंपर पड़ी हुई देखी जाती है।

इस अवम अवस्थाका अन्ततः जो लाभ माना गया है वह यह है कि इन लोगोंकी आर्थिक स्थिति सुधरती है। यदि आत्मा बेचकर आर्थिक स्थिति सुधरती हो तो भी सभी यह मानेंगे कि आत्मा नहीं बेची जानी चाहिए।

ऊपर जो स्थिति बताई गई है वह पचास वर्ष तक कैसे चलती रही; हममें से कोईभी इस स्थितिको सहन करनेके लिए तैयार नहीं होगा। तब हमने अपने भाइयोंको इस स्थिति में कैसे सहन किया? इस प्रश्नको उठाकर हम यह कदापि नहीं चाहते कि लोग भूतकालके लिए शोक करें। किन्तु हम इससे यह तो समझ सकते हैं कि आज हमारा कर्तव्य क्या है। स्वर्गीय गोखलेने सन् १९१२ के मार्च मासमें बड़ी धारा-सभा (इम्पीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल) में यह प्रस्ताव प्रस्तुत किया था कि गिरमिटकी प्रथा बन्द करके भारतसे गिरमिटियोंका जाना रोक दिया जाना चाहिए। उस समय “२२ सदस्योंने यह भी निश्चय किया था कि जबतक गिरमिटकी प्रथा बन्द नहीं की जाती तबतक वे स्वयं इस प्रस्तावको प्रतिवर्ष प्रस्तुत करते रहेंगे।” उन लोगोंके चले जानेके बाद उनके संकल्पको पूरा करनेका दायित्व हमपर है। श्री ऐंड्रयूज और श्री पियर्सन फिजी गये हैं। वे वहाँ इसी कार्यको पूरा करनेके लिए गये हैं। इसलिए इस प्रश्नपर विचारपूर्वक चर्चा करके इसे अन्तिम रूपसे तय करवाने में भाग लेना प्रत्येक शिक्षित भारतीयका कर्त्तव्य है, यह कहना उचित ही है।

यहाँ इससे अधिक विस्तारमें कहना सम्भव नहीं है; किन्तु जो इस प्रश्नका अध्ययन करना चाहते हैं उन्हें सुगमतापूर्वक पर्याप्त साहित्य मिल सकता है। इसमें मुख्य है, ऊपर बताये गये प्रस्तावपर धारा-सभामें हुई बहस, सैंडर्सन समितिकी रिपोर्ट और गिरमिटयोंकी स्थितिपर श्री मैकनील और श्री चिमनलालका प्रतिवेदन यदि कोई पत्र इस साहित्यपर अलग सम्पादकीय लेख लिखे तो वह अवश्य ही उपयोगी होगा।

[गुजरातीसे]
समालोचक, दिसम्बर, १९१५
 

१३६. भाषण: वीरमगाँवमें

दिसम्बर १, १९१५

मोहनदास करमचन्द गांधी आज पहली तारीखको १ बजेको मेलसे वीरमगाँव पहुँचे। स्टेशनपर उनका स्वागत वीरमगाँवके लगभग २५ लोगोंने किया। करीब एक घंटा रुकनेके बाद श्री गांधी गाड़ीसे राजकोट चले गये।

गंधीने इस बीचमें वीरमगाँव स्टेशनपर एकत्रित लोगोंके सम्मुख एक भाषण दिया। इसमें उन्होंने कहा: मैं स्व० गोखलेके स्मारकके लिए धन-संग्रह करने राजकोट जा रहा हूँ। मेरी प्रार्थना है कि वीरमगाँवके लोग भी स्मारकके लिए धन दें।