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१२८. पत्र: खुशालचन्द गांधीको

[अहमदाबाद
नवम्बर ८, १९१५][१]

आदरणीय भाईकी सेवामें,

पिछले वर्ष मैंने आपको बड़ा कष्ट दिया। किन्तु मैंने सब-कुछ शुद्ध भावसे देश, कुटुम्ब और आत्माके कल्याणके विचारसे ही किया था, इसलिए अपनेको क्षमाका पात्र मानकर मैं आपसे क्षमा चाहता हूँ। मैं आपके आशीर्वादका भूखा हूँ, क्योंकि यदि कुटुम्बमें बड़े-बूढ़ोंमें कोई मेरी बातको थोड़ा-बहुत समझता है तो वह आप ही समझते हैं। मैं अपनी भाभीजीके चरणोंमें शीश झुकाकर उनका आशीर्वाद भी माँगता हूँ और उनसे क्षमा चाहता हूँ।

मोहनदासके दण्डवत्

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ५६८१) से।

सौजन्य: नारणदास गांधी

 

१२९. पत्र: मथुरादास त्रिकमजीको

अहमदाबाद
कार्तिक सुदी ३, [नवम्बर १०, १९१५]

चि० मथुरादास,

मैं तुम्हारा [ठीक] पता तो भूल ही गया हूँ।

तुम्हारे कार्डसे पता चलता है कि तुम अभी मुझे भूले नहीं हो। तुमसे मुझे बड़ी आशा है। प्रभु उसको फलवती बनानेके लिए तुम्हें विशेष नैतिक बल दे।

मोहनदासके आशीर्वाद

[गुजरातीसे]
बापुनी प्रसादी
 
  1. १. डाकखानेकी मुहरसे।