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१२६. पत्र: मगनलाल गांधीको

अहमदाबाद
आश्विन बदी ११ [नवम्बर ३, १९१५][१]

चि० मगनलाल,

मैंने तार[२]दिया था कि यदि चि० छगनलाल अबतक अच्छा न हुआ उसे यहाँ भेज दिया जाये। इससे खुशालभाई प्रसन्न हुए। उत्तर मिला है कि “छगनलालकी हालत में सुधार” ――वेस्ट। इससे लगता है कि छगनलाल जल्दी तो नहीं आयेगा। फिर भी लिख रहा हूँ कि यदि वहाँ छगनलालके बिना काम चल सकता हो तो वह यहाँ आ जाये।

सत्याग्रहके हिसाबकी छपाई लगभग पूरी हो चुकी है।

केशू खूब मौज करता है। उसे एक दिन ज्वर आ गया था। सब बच्चे मेरे पास ही सोते हैं। यह बहुत अच्छा हुआ है―― कि उन्हें पढ़ाता भी में ही हूँ। नारणसामी[३] और पार्थ सारथीको[४]संस्कृतके अतिरिक्त सब विषय में पढ़ाता हूँ। मैं चाहता कि अभी तो वे मेरे ही पास रहें।

बा कुछ शान्त है; किन्तु मैं देखता हूँ कि वह मन-ही-मन कुढ़ती रहती है। छूतछातके बारेमें उसका आग्रह कुछ कम हो गया है।

अमृतलालभाई ठक्कर[५] इस समय आश्रममें हैं।

खुशालभाईने लिखा है कि जरूरत हो तो वे जमनादासको भेजनेको तैयार हैं। इसलिए मैंने उसे बुलाया है।[६]

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (एस० एन० ६२३९) की फोटो-नकल से।

 
  1. १. यह भी १९१५ में लिखा गया जान पड़ता है; देखिए, अगला शीर्षक।
  2. २. उपलब्ध नहीं है।
  3. ३. और
  4. ४. आश्रमके सदस्य; देखिए “आश्रम: आनुमानिक व्यय”, मई ११, १९१५
  5. ५. ठक्कर बापा (१८६९-१९५१); जिन्होंने अपना जीवन आदिवासियों और अछूतों के उत्थानके लिए अर्पित कर दिया था।
  6. ६. पत्र अपूर्ण है।