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पत्र: ए० एच० वेस्टको

 

बहियोंके सम्बन्धमें तुम्हारा खयाल बिलकुल गलत है। हमारी बहियोंमें समस्त आय और व्यय दिखाया गया है। हमें हिसाबकी जाँच करानेकी कोई आवश्यकता नहीं है। हमें किसीका कुछ देना नहीं है और किसीको भी हमें कुछ करनेके लिए कहनेका कानूनी हक नहीं है। हाँ, समिति कह सकती है। धन-दाता भी व्यक्तिगत रूपसे कह सकते हैं। उनका हम समाधान कर सकते हैं। अभीतक ऐसा एक पैसा भी खर्च नहीं किया गया है जो इस कोषकी मर्यादाके अन्तर्गत न आता हो।

सत्याग्रहियोंकी सहायताके अन्तर्गत पोलक, थम्बी और काछलिया भी आते हैं। मेरा खयाल है कि हमने काछलियाको जो ऋण दिया था वह वापस नहीं मिला। इसी प्रकार छगनलाल, मगनलाल और प्रागजी आदि भी राहतके अन्तर्गत आ जायेंगे। इसमें नायडूके और अन्य सत्याग्रहियोंके बच्चे तो आते ही हैं। मैं और मेरा परिवार इसके अन्तर्गत नहीं आयेंगे क्योंकि हमारा खर्च दूसरी तरहसे मिल जाता है। चूँकि में इस कोषका नियन्त्रक हूँ या रहा हूँ, इसलिए मेरी इच्छा यही रही है कि में अपने लिए सहायता लेनेसे बचा रहूँ। किन्तु यदि मुझे सहायता देनेवाला दूसरा कोई भी न होता तो मैं अपना और बच्चोंका खर्च इसमें से लेनेमें न झिझकता। और मैं यह बात लोगोंके सम्मुख स्पष्ट तो करता ही। चूँकि दूसरे सत्याग्रही मेरी आड़में हैं, इसलिए उनके सम्बन्धमें ऐसी सावधानी रखनी आवश्यक नहीं है।

चूँकि अब हमारे हाथमें रुपया नहीं रहा, इसलिए मुझे जमीनमें रुपया लगानेके तुम्हारे प्रस्तावपर विचार करनेकी जरूरत नहीं है।

मैंने छगनलालके सम्बन्धमें तुम्हें तार[१] दिया है। जान पड़ता है, वह टूटता जा रहा है। यदि यह सही हो तो उसे यहाँ भेज दिया जाये। और यदि प्रागजी और इमाम साहब कामको हाथमें न लेंगे तो मुझे किसीको यहाँसे भेजना होगा। मैं तो केवल इतना ही जानता हूँ कि तुम्हें गलियोंमें मजदूरी भी करनी पड़े फिर भी तुम्हें ‘इं० ओ०’ को चलाते रहना चाहिए। यदि तुम और सब छोड़कर निश्चयपूर्वक इस कार्यमें जुट जाओ तो अच्छा हो। किन्तु यदि तुम नहीं जुट सकते तो जबतक तुम फीनिक्समें अखबार निकालोगे तबतक तुम्हारा और तुम्हारे परिवारका भरण-पोषण हर हालतमें किया जायेगा।

मेरा खयाल है तुमने जितने महत्त्वपूर्ण मुद्दे उठाये थे, में उन सबका उत्तर दे चुका हूँ, मेरा अभिप्राय है, नई परिस्थितियोंको ध्यानमें रखते हुए। अब तुम सब पर विचार कर लो और तब मुझे अपना निर्णय बताओ। मुझे सत्याग्रहका ३१ जनवरी तक का हिसाब मिल चुका है। यदि छगनलाल वहाँ हो या यदि प्रागजी हिसाब तैयार कर सकें तो तुम मुझे इससे बादका हिसाब भेज दो।

हृदयसे तुम्हारा,
मो० क० गांधी

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजी पत्र (सी० डब्ल्यू० ४४२१) की फोटो-नकल से।

सौजन्य: ए० एच० वेस्ट

  1. १. देखिए अगला शीर्षक।