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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

श्री गांधीने कहा कि शिक्षा के क्षेत्रमें कुछ लोक-कल्याणकारी संस्थाएँ अवश्य ही कुछ काम कर रही हैं परन्तु वे कोई बड़ा ठोस काम नहीं कर रही हैं और उनसे ऐसी आशा ही की जा सकती है। श्री बाल्फरने[१]गिरमिटिया मजदूरकी तुलना सैनिकसे की है। परन्तु सैनिक तो एक जिम्मेदार व्यक्ति होता है और वह ऊँचे पद तक पहुँच सकता है। दूसरी ओर गिरमिटिया मजदूर तो वही मजदूरका-मजदूर बना रहता है। उसके अपने कोई विशेषाधिकार नहीं होते। इतना ही नहीं उसकी निर्योग्यताएँ उसकी पत्नी और उसके बच्चेपर भी थोपी जाती हैं। गिरमिटिया भारतीय कभी भी मजदूरसे ऊँचे किसी ओहदेपर नहीं पहुँच सकता। और भारत वापस लौटनेपर वह अपने साथ लाता क्या है? लौटनेपर वह एक टूटी-फूटी नौका-जैसा रह जाता है; उसमें सभ्यताके कुछ कृत्रिम तथा ऊपरी चिह्न रह जाते हैं पर वह अपने पीछे कहीं अधिक मूल्यवान वस्तुएँ छोड़कर चला आता है। हो सकता है कि कुछ सिक्के भी वह अपने साथ ले आये। इस घृणित प्रथासे हमारे राष्ट्रीय आत्म-सम्मानकी हानि होती है, इसलिए इसे बरकरार नहीं रहने देना चाहिए।

यदि आप मेरी इन बातोंपर अच्छी तरह विचार करेंगे, तो आप इस प्रथाको एक वर्षके अन्दर-अन्दर हटानेका प्रयत्न करेंगे और हमारा यह राष्ट्रीय कलंक धुल जायेगा; गिरमिटिया मजदूरोंकी एक कहानी-भर रह जायेगी। श्री गांधीने कहा कि मैं चाहता हूँ कि उपनिवेशों में भारतीयोंके साथ होनेवाले दुर्व्यवहारका कारण दूर कर दिया जाये। इस प्रथाको कितना ही समर्थन दिया जाये, रहेगी तो वह दासतासे मिलती-जुलती एक प्रथा ही। वह पूर्ण दासतापर आधारित एक स्थिति तो बनी ही रहेगी और ऐसी स्थिति राष्ट्रीय उत्थान और प्रतिष्ठाके लिए बाधास्वरूप है।

[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे क्रॉनिकल, २९-१०-१९१५
 

१२४. मगनलाल गांधीको लिखे पत्रका अंश[२]

[अक्तूबर २८, १९१५के बाद][३]

...करनेसे पूरा पड़ जायेगा।[४] तेलके बिना काम चलाया जा सके तो यह बहुत महत्त्वपूर्ण फेरफार होगा। मैंने देखा है कि कुछ संस्थाओंमें तेल या घी कुछ नहीं दिया जाता।

  1. १. आर्थर जेम्स बाल्फर (१८४८-१९३०); ब्रिटिश राजनीतिज्ञ,कंजरवेटिव नेता और प्रधानमन्त्री।
  2. २. पत्रके पहले दो १४ उपलब्ध नहीं हैं।
  3. ३. तमिल-अध्यापकके उल्लेखसे लगता है कि यह पत्र तब लिखा गया जब मगनलाल गांधी मद्रासमें थे। मगनलाल २८ अक्तूबरको ही मद्रासके लिए रवाना हुए थे।
  4. ४. मूलमें यह वाक्य अस्पष्ट है।