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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जल्दी समाप्त कर दी जाये, गिरमिटिया मजदूरों और मालिकोंके लिए उतना ही अच्छा होगा। लॉर्ड सेल्बोर्नने भी दक्षिण आफ्रिकाके उच्चायुक्तके पदसे यही बात कही थी: उनका कहना था कि यह प्रथा मजदूरोंसे ज्यादा तो मालिकोंके लिए बुरी है क्योंकि यह लगभग गुलामीकी प्रथा ही है। सर विलियम हंटरने[१] १८९५ में इस प्रथाका स्वयं अध्ययन करनेके बाद एक बड़ी सुन्दर पत्र-माला लिखी थी। उन्होंने उचित जाँच-पड़तालके बाद गिरमिट-प्रथाको गुलामी-प्रथासे एक बहुत मिलती-जलती अवस्था बतलाया था। एक स्थानपर उन्होंने इसके लिए “अर्ध-दासता” शब्दका प्रयोग किया था। श्री गांधीने कहा, यदि उन्होंने ऐसा कहकर गलतबयानी की, तो उस गलतबयानीमें लॉर्ड सेल्बोर्न भी भागीदार हैं। इन दो सुयोग्य सज्जनों, आयुक्तोंने भी इसी प्रथाके सिलसिलेमें प्रतिवेदन तैयार करते हुए इसे बरकरार रखने के लिए कुछ शर्तें लगाना जरूरी समझा; शर्तें भी इस प्रकारको जो पूरी की ही नहीं जा सकतीं। शर्तें थीं कि अनुपयुक्त प्रवासियोंको छाँट दिया जाये, उनमें स्त्रियोंका अनुपात ४० से बढ़ाकर ५० प्रतिशत कर दिया जाये। श्री गांधीने कहा कि मेरी समझ में नहीं आता कि “अनुपयुक्त प्रवासियोंको” छाँटनेसे उनका आशय क्या था। आयुक्तोंने स्वयं ही उनसे कहा था कि भारतमें मजदूर मिलना आसान नहीं है। भारत अपने बच्चोंको अर्द्ध-दास बननेके लिए देशसे बाहर भेजने के लिए लालायित नहीं है। लॉर्ड सैंडरसनने[२] कहा था, भारतको आर्थिक दशासे असन्तुष्ट होकर वहाँको फाजिल आबादी देशसे बाहर चली गई थी। परन्तु उनको यह भी याद रखना चाहिए कि सन् १९०७ में मजदूरोंकी भर्तीके लिए ५०० भर्ती परवाने जारी किये गये थे। स्थिति सामान्य नहीं है, इसका अनुमान क्या इसी बातसे नहीं लग जाता कि हर १७ मजदूरोंकी भर्तीके लिए एक भर्ती करनेवाला अपेक्षित है? इन गिरमिटिया मजदूरोंको भर्ती करनेके लिए भारतमें औपनिवेशिक सरकारोंके अपने ऐसे एजेंट भी मौजूद हैं। एक कुलीकी भर्ती करनेके लिए पच्चीस रुपये मिलते हैं और ये पच्चीस रुपये भर्ती करनेवाले और इन एजेंटोंमें बाँट लिये जाते हैं। श्री गांधीने विचार व्यक्त किया कि अपने इतने देशवासियोंको अर्द्ध-दास बन जानेके लिए भर्ती करानेवाले लोगोंकी मानसिक अवस्था अत्यन्त ही दयनीय होगी। भर्ती करानेवाले लोगों और एजेंटोंके कारनामे देखकर और उनकी कई गलतबयानियाँ पढ़नेके बाद हमें इस बातपर आश्चर्य नहीं होता कि हमारे हजारों-हजार देशवासी गिरमिटिया मजदूर बन रहे हैं। आयुक्तोंने बागानमें होनेवाली अनैतिकताओंका वर्णन कई पृष्ठों में किया है। इतना ही नहीं कि ६० पुरुषोंके बीच ४० स्त्रियाँ थीं, बल्कि उन्होंने कहा

  1. १. (१८४०-१९००) एक इतिहासज्ञ, भारत सम्बन्धी मामलोंके अधिकारी विशेषज्ञ, इंडियन एम्पायरके लेखक; उन्होंने पच्चीस वर्षतक भारतमें नौकरी की थी। वह भारतीयोंकी भावनाओंके प्रति सहानुभूति रखते थे और लन्दनमें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसकी ब्रिटिश समितिके एक सदस्य थे।
  2. २. सम्राटके उपनिवेशों ―― जमँका, ट्रिनीडाड, ब्रिटिश गायना और फीजीकी परिस्थितिकी पड़तालके लिए इंग्लैंडमें ब्रिटिश सरकार द्वारा नियुक्त सैंडरसन समिति (१९०९) के अध्यक्ष सैंडरसन।