ऐसा लगता है फीनिक्समें बहुत उलट-फेर हो रहा है।[१] छगनलाल बिलकुल अलग ऐसा लगता है फीनिक्समें बहुत उलट-फेर हो रहा है। छगनलाल बिलकुल अलग हो गया जान पड़ता है। इं० ओ० का दाम एक पैनी कर दिया गया है। मुझे लगता है उसने उतावलापन किया है। शायद इसका फल भी अच्छा निकले। विशेष तुम्हारे आनेपर। तुम्हें तो उद्विग्न होना ही नहीं चाहिए। भार उठानेवाले तो तुम्हीं हो।
बापूके आशीर्वाद
गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ५६७९) से।
सौजन्य: नारणदास गांधी
१२२. पत्र: ए० एच० वेस्टको
अहमदाबाद
सितम्बर २६, [१९१५][२]
तुम्हारा टाइप किया हुआ पत्र मिला।
जो परिवर्तन किये गये हैं वे मैंने देख लिए हैं। मैं उन्हें ठीक मानता हूँ।मुख्य बात यही है कि जैसे भी हो ‘इंडियन ओपिनियन’ को चालू रखा जाये। यदि तुम जनताकी, अर्थात् सत्याग्रह-कोषसे कुछ भी सहायता लिए बिना स्वतन्त्र रूपसे काम चला सको तो और भी अच्छा।
इसका यह अर्थ हुआ कि मैंने तुम्हें जो हिसाब[३]भेजा है उसमें संशोधन करना होगा। अच्छा हुआ कि मुझसे देर हो गई। नई योजनामें फेरफार करनेकी जरूरत है, इसे में जल्दी ही करूँगा।
इतनी बड़ी रकमको मैं तो अपने पास नहीं रखूंगा; यह न्यासको सौंप दी जायेगी।
प्रागजी[४]और इमाम साहबको[५]जो रुपया दिया गया है उसका एक हिस्सा सत्याग्रह-कोषके खाते नाम लिखनेके सम्बन्धमें मेरा खयाल यह है कि जिस बैठकमें यह मामला तय हुआ उसमें ये लोग मौजूद थे। फिर भी यदि वे आपत्ति करें तो यह रकम ‘इंडियन ओपिनियन’ की सहायताके रूपमें सत्याग्रह-कोषके नाम डाल दी जाये। दोनों अवस्थाओंमें रुपया आयेगा तो सत्याग्रह-कोषसे ही। चूँकि पूरी रकमको ‘इंडियन ओपिनियन’ के खर्चेमें डालना न्यायोचित न होता, इसलिए यह रकम राहत-खाते लिख
- ↑ देखिए अगला शोषक।
- ↑ यह वेस्टके २३ अगस्त १९१५ के पत्रके उत्तर में लिखा गया था। वेस्टके पत्रपर गांधीजीने लिखा है: “उत्तर, २६ सितम्बर”।
- ↑ देखिए, “पत्र: ए० एच० वेस्टको”, ३-८-१९१५।
- ↑ प्रागजी खण्डूभाई देसाई, दक्षिण आफ्रिकी सत्याग्रह में भाग लेनेवाले एक सत्याग्रही।
- ↑ इमाम अब्दुल कादिर बावजीर, मुस्लिम इमाम और सत्याग्रही, हमीदिया इस्लामिया अंजुमनके अध्यक्ष।