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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पत्नीसे कह दिया है कि वह मुझे छोड़ सकती है और हम सद्भावपूर्वक अलग-अलग हो सकते हैं। यह कदम बड़े महत्त्वका है, क्योंकि इससे मैं दलित वर्गोंके साथ इतना सम्बद्ध हो जाता हूँ कि निकट भविष्य में ही सम्भव है मुझे ढेड़ोंके मुहल्लेमें जाकर रहने और उन्हींके साथ जीवन-यापन करनेके विचारको कार्य-रूप देना पड़े। इसका प्रभाव मेरे पक्केसे-पक्के सहयोगियोंपर भी पड़ेगा। मैंने आपको कहानी मोटे रूपमें बता दी है। इसमें बड़ी बात कुछ नहीं है। यह मेरे लिए इसलिए महत्त्वपूर्ण है कि इससे मैं सामाजिक मामलों में भी सत्याग्रहकी क्षमता सिद्ध कर सकता हूँ। और जब में अन्तिम कदम उठाऊँगा तो उसमें स्वराज्य आदि भी समाविष्ट होंगे।

कृपया इसे डॉ० देवको और अन्य जिन सदस्योंको दिखाना चाहें, दिखा दें।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजी पत्र (जी० एन० ६२९१) की फोटो-नकलसे।

 

१२१. पत्र: मगनलाल गांधीको

अहमदाबाद
[सितंबर २६, १९१५ के पूर्व][१]

चि० मगनलाल,

मैंने श्री खुशालभाईको फिर पत्र[२] लिखा है। तुम वहाँ स्वस्थ रहकर काम करना। वही काम करना जिससे अन्तरात्मा प्रसन्न हो। संतोक लौटना चाहती हो तो कोई हर्ज नहीं। मद्रास जाये तो भी ठीक है। वह वहाँ आश्रमके सब नियमोंका पालन करती रहे, इतना काफी है। तुम्हें वहाँ रुकना हो तो रुक जाना। मद्रास जाना हो तो मद्रास चले जाना।

तुम्हारे नाम दो पत्र आये है। उन्हें अभी नहीं भेज रहा हूँ।

नारणदास निश्चिन्त रहे। उसे भविष्यके सम्बन्धमें श्रद्धावान् और निर्भय रहना चाहिए।

केशू बहुत जल्दी ठिकानेपर आ गया। आज तो वह खेल भी रहा है। उसके दो विषय मेरे पास हैं। इसलिए मैं उसकी स्थिति ज्यादा अच्छी तरह देखता रह सकूँगा। पुरुषोत्तमको[३]तो कुछ नहीं हुआ। वह तो पहले ही की तरह खाता-पीता है।

दूदाभाई रविवारको सबेरे आ जायेंगे।

 
  1. दूदाभाई, जिनका इस पत्र में उल्लेख है, रविवार २६ सितम्बर, १९१५ को सपत्नीक आश्रम में आये थे।
  2. यह उपलब्ध नहीं है।
  3. नारणदास गांधीका पुत्र।