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११७. पत्र : माधुरीप्रसादको

अमदाबाद

भाद्रपद शुक्ल १ [सितम्बर १०, १९१५]

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आपका और तोतारामजीका' खत मुझे मीला है। मैं दिलगीर हुं की मुझे फीरो- जाबाद जानेका हाल तुरतमें बीलकुल वखत नहि है। इस आश्रमके काममें से मेरा छुटकारा न होने सकता है।

आपका,

मोहनदास गांधी

रा० रा० माधुरीप्रसाद
भारतीभुवन कार्यालय
फीरोजाबाद

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल पत्र (जी० एन० २७६४) की फोटो-नकलसे।

११८. पत्र : वी० एस० श्रीनिवास शास्त्रीको

अहमदाबाद

सितम्बर १४, १९१५

प्रिय श्री शास्त्रियर,

मेरा खयाल है कि अखबारमें निकले वक्तव्यका तुरन्त उत्तर दिया जाना चाहिए। केपटाउनमें और अन्य अवसरोंपर उनकी मेरी जो बातचीत हुई थी उसे मैं बतानेके लिए तैयार हूँ। हस्ताक्षरकी बातपर विश्वास करना तबतक सम्भव नहीं है जब तक हम मूल प्रार्थनापत्रको ही न देख लें। जिस बातको उछालनेकी शरारतसे भरी हुई यह कोशिश की जा रही है, मैं नहीं जानता उसे क्या नाम दूं।

मैं अपने जीवनमें एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाने जा रहा हूँ। आज इतना समय नहीं कि इस सम्बन्धमें लिखूं। इसका सम्बन्ध कुछ हदतक परिया (अन्त्यजों) के प्रश्नसे है।

हृदयसे आपका,

मो० क० गांधी

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजी पत्र ( जी० एन० ६२८८) की फोटो-नकलसे।

१. तोतारामजी सनाढ्य जो फिजीमें २१ वर्ष रहे थे । उन्होंने अपने वहाँके जीवनके सम्बन्धमें एक पुस्तक लिखी है। वे बादमें साबरमती आश्रम में गांधीजीके साथ आ गये थे।

२. यहाँ अभिप्राथ एक अन्त्यज दूदाभाईको आश्रममें लेनेके निर्णयसे है; देखिए "पत्र : श्रीनिवास शास्त्रीको ", २३-९-१९१५।