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११५. पत्र : नारणदास गांधीको

अहमदाबाद

श्रावण सुदी ११ [ अगस्त २१, १९१५]

चि० नारणदास,

तुम्हारा पत्र मिला । मेरी समझमें तुम्हारा कर्त्तव्य सीधा-सादा है। तुम समय रहते सूचित कर चुके थे। अब वे तुम्हें केवल अपने स्वार्थके कारण रोक रखना चाहते हैं। किन्तु वे ऐसा नहीं कर सकते। सितम्बरमें भी तुम्हें उनके मुकदमेकी खातिर उन्हीं के खर्चसे एक दो दिनके लिए जाना होगा।

निदेशक (डाइरेक्टर) सदा ही लोभी होते हैं और प्रश्नका एक ही पक्ष देखते हैं। उन्हें केवल अपना ही स्वार्थ दिखाई देता है। मेरा यह अभिप्राय मालूम हो जानेके बाद तुम्हें क्या करना है और क्या नहीं, यह निर्णय स्वयं तुम्हें करना होगा।

मोहनदासके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ५६७७) से । सौजन्य : नारणदास गांधी


११६. पत्र : वी० एस० श्रीनिवास शास्त्रीको

अहमदाबाद

अगस्त २३, [१९१५]

प्रिय शास्त्रियर,

पत्रवाहक मणिलाल मेरा दूसरा बेटा है । वह अपने मद्रासमें रहनेका कारण बतायेगा। उसे वहाँ तमिल सीखने और हाथ-करघे पर कपड़ा-बुनाई सीखनेका अपना शिक्षण पूरा करना है। कृपया उसका मार्गदर्शन करें। हनुमन्तराव अपनी समाज-सेवाकी शिक्षा मणिलाल पर आजमा सकते हैं।

हृदयसे आपका,

मो० क० गांधी

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजी पत्र (जी० एन० ६२९२) की फोटो-नकलसे।

१. इस वर्ष मणिलाल गांधी मद्रासमें थे।

२. वे मद्रास में यह शिक्षण लेने के लिए पहले भी गये थे। देखिए “पत्र : सुन्दरम्को ", १३-७-१९१५ या उसके बाद।