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१०६. पत्र: छोटालाल तेजपालको

[अहमदाबाद]

आषाढ़ सुदी ११ [जुलाई २२, १९१५]

भाई श्री छोटालाल,

मुझे तुम्हारा पत्र मिल गया है। किन्तु समय न मिलनेसे उसकी पहुँच नहीं दे सका। क्षमा करना।

तुम्हारे कष्टका कारण चुंगी-विभाग नहीं है। शुरूआत तो पुलिस विभागसे हुई है। पुलिस पर मुकदमा चलाना सम्भव तो है; किन्तु मैं उसकी सलाह नहीं देता। फिलहाल तो मैं यही ठीक मानता हूँ कि उस सम्बन्धमें पुलिस विभागको एक पत्र भेजा जाये। पत्र वहाँके अपने किसी वकील मित्रसे भिजवाना ठीक होगा। तुम स्वयं भी भेज सकते हो । यदि तुम इस पत्रमें गुजराती भाषामें संक्षेपमें केवल तथ्य भी लिख दोगे तो काफी है। इससे [ आगेकी कार्यवाही के लिए | बुनियाद मिल जायेगी।

वीरमगांव सम्बन्धी कागजात फिलहाल मेरे पास रहने देना जरूरी है। मैं इस मामलेको छोडूंगा नहीं।

मोहनदासके वन्देमातरम्

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (जी० एन० २५९१) की फोटो-नकलसे।

१०७. मथुरादास त्रिकमजीको लिखे पत्रका अंश

अहमदाबाद

आषाढ़ सुदी १५ [जुलाई २६, १९१५]

छुआछूतका प्रश्न एक बहुत बड़ा प्रश्न है। मुझे लगता है कि हम एक वर्गको अस्पृश्य बनाये रखकर महापाप कर रहे हैं। एक वर्गको अस्पृश्य बना रखनेके कारण- ही हम लोगोंमें कुछ अत्यन्त भयंकर रिवाज हैं। किसीके साथ न खाया जाये और किसीका स्पर्श न किया जाये, इन दोनों बातोंमें बहुत अन्तर है। अब तो अस्पृश्य कोई नहीं रहा है। हम ईसाइयों और मुसलमानोंको छूते हैं तो फिर अपने ही धर्म के लोगोंको क्यों न छुएँ ? न्यायत: और व्यवहारतः अस्पृश्यताका समर्थन सम्भव नहीं रहा।

[गुजराती से]

बापुनी प्रसादी

१. वीरमगाँव सम्बन्धी कागजातका उल्लेख होनेसे यह पत्र या तो २२ जुलाई, १९१५ को या ११ जुलाई १९१६ को या १ जुलाई १९१७ को लिखा गया होगा । १ जुलाई १९१७ को गांधीजी मोतीहारीमें थे । वे ११ जुलाई, १९१६ को कहाँ ये, पह हमें मालूम नहीं । वे २२ जुलाई, १९१५ को अहमदाबादमें ही थे । फिर भी हो सकता है कि यह १९१६ में लिखा गया हो ।