अहमदाबाद
आषाढ़ सुदी ३ [जुलाई १५, १९१५]
{left|चि० मणिलाल,}}
तुम्हारा पत्र मिल गया है। मैं तुम्हें मारा-मारा नहीं फिरने दूंगा, किन्तु हिम्मत मत हारो। तुम मेरे साथ भी लाचारों-जैसा बरतो, यह मुझे अच्छा नहीं लगता। तुम जो कठिनाइयाँ सामने हों, उन्हें सहन करो, यही वांछनीय है। मद्रासमें मच्छर तो सभी जगह हैं। पतला कपड़ा ओढ़कर सोना चाहिए। चेहरेपर थोड़ा-सा मिट्टीका तेल मल लिया जाये तो मच्छर नहीं आयेंगे। तुम बिलकुल खुली हवामें तो सोते ही होओगे; यदि नहीं तो अब सोने लगना । उसी मुहल्लेमें मैदान-जैसी खुली हवावाला कमरा मिले तो ले लेना।
गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ११२) से।
सौजन्य : सुशीलाबेन गांधी
अहमदाबाद
जुलाई १६ [ १९१५]
प्रिय श्री शास्त्रियर,
श्री ऐन्ड्रयूजके पत्रकी प्रति आपकी जानकारीके लिए भेजी जा रही है। मेरा खयाल है कि सोसाइटी पूर्णतः निषेध' करानेके लिए बड़े पैमानेपर एक आन्दोलन शुरू कर सकती है।
हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी
क्या आप मुझे तमिलका एक शिक्षक दे रहे हैं?
गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजी पत्र ( जी० एन० ६२९३) की फोटो-नकलसे।
१. यह पत्र अपूर्ण है।
२. मणिलाल ७ जुलाई, १९१५ को मद्रास गये थे।
३. जिस पत्रके उत्तरमें यह भेजा गया था, उसमें चूँकि सी० एफ० ऐन्ड्यूजने अपनी बीमारीका किया था, इसलिए यह पत्र-व्यवहार शायद १९१५ में हुआ होगा।
४. यह पत्र ११ जुलाईको शिमलासे लिखा गया था, जहाँ ऐन्ड्रयूज़ बीमारीके बाद स्वास्थ्य-लाभके लिए रह रहे थे । यहाँ उस पत्रको प्रकाशित नहीं किया जा रहा है।
५. भारत लेवक समाज (सर्वेट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी)।
६. भारत में गिरमिटिया मजदूरोंकी भर्तीका।