पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 13.pdf/१५१

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
११९
भाषण : १५ वें बम्बई प्रान्तीय सम्मेलन, पूनामें

कुछ वर्ष पहलेकी बात है 'कॉन्प्रिन्ज' नामक जहाजपर में गुरुदेव [ श्री गोखले] के साथ यात्रा कर रहा था। हमारे साथ श्री कैलेनबैक भी थे। आप एक जर्मन हैं जो हम दोनोंके मित्र हैं। ध्यान रखना चाहिए कि सभी जर्मन शैतान नहीं होते और न सब जर्मन-सैनिक ही शैतान होते हैं। श्री कैलेनबैक जर्मन भी हैं और सैनिक भी। परन्तु मुझे लगता है कि आज यूरोपकी भूमि पर श्री कैलेनबैक-सा कोई शुद्धमना व्यक्ति नहीं है। श्री गोखले उन्हें एक योग्य साथी मानते थे और उनके साथ [कोएट्स ] चकतीका खेल खेला करते थे। श्री गोखलेने यह खेल उन्हीं दिनों इंग्लैण्डसे केपटाउनकी यात्रामें सीखा था। फिर भी उन्होंने श्री कैलेनबैकको उसमें हरा ही दिया होता मगर लगता है किसी प्रकार खेल बराबरी पर छूटा। और जहाँतक मुझे मालूम है, श्री कैलेनबैक दक्षिण आफ्रिकामें चकतीके अच्छेसे अच्छे खिलाड़ियोंमें से हैं। इसीके बाद हम लोग जब खाना खाने बैठे तब श्री गोखलेने इस खेलके परिणामकी चर्चा छेड़ी। उनका खयाल था कि मैं ऐसे खेलों में दिलचस्पी नहीं लेता और उनके विरुद्ध हूँ। उन्होंने मृदु शब्दोंमें मेरी भर्त्सना करते हुए कहा : 'तुम जानते हो मैं यूरोपीयोंके साथ ऐसी प्रतियोगितामें क्यों पड़ना चाहता हूँ? मैं अपने देशकी खातिर कमसे-कम उतना तो अवश्य करना चाहता हूँ जितना वे अपने देशकी खातिर कर सकते हैं। सही हो या गलत; मगर कहा जाता है कि बहुत-से मामलोंमें हम उनके मुकाबिलेमें नहीं टिक सकते।" और फिर उन्होंने पूर्ण विनम्रताके साथ कहा : “मैं निश्चय ही इतना दिखा देना चाहता हूँ कि अगर हम [ हर बातमें ] उनसे बड़े नहीं तो उनके बराबर जरूर हैं।"

यह एक घटना हुई। उसी जहाजपर अपनी प्यारी मातृभूमिके बारेमें हममें जोरोंकी चर्चा हो रही थी। जैसे कोई पिता अपने बच्चेके लिए करता है वैसे ही उन्होंने मेरे लिए एक कार्यक्रम तय कर दिया ताकि जब कभी मुझे पुनः मातृभूमिको लौटनेका अवसर प्राप्त हो, मैं उसके अनुसार काम कर सकूँ। उसी सम्बन्धमें एक बात उन्होंने यह कही : " 'हम भारतीयोंमें चरित्रबल नहीं है, हमें राजनैतिक क्षेत्रमें धार्मिक उत्साहकी जरूरत है। हमें चाहिए कि हम प्राणपणसे और धार्मिक उत्साहके साथ गुरुदेवके इस भावका अनुसरण करें ताकि हम किसी बच्चेको भी राजनीतिकी शिक्षा देनेमें झिझकें नहीं। मेरा खयाल कि हमें यह सिखाना भी कि जो कुछ भी हम करें, लगनसे करें, उनके जीवनके उद्देश्योंमें से एक था। हम नश्वर प्राणियोंके लिए इसका निर्दोष अनुकरण सम्भव नहीं है। वे जो कुछ भी करते थे, पूरे धार्मिक उत्साहसे करते थे। उनकी सफलताका यही रहस्य था। उनका धर्म बाह्याडम्बर मात्र नहीं था । वह तो उनका जीवन ही था । उन्होंने जिसे छुआ उसे कंचन कर दिया। जहाँ-कहीं भी वे जाते थे, उनके आसपासका वातावरण महक उठता था। जब वे दक्षिण आफ्रिकामें आये, वहाँके लोग स्फूर्तिसे भर गये । इसका कारण उनके भव्य धाराप्रवाह भाषण ही नहीं, बल्कि उनके चरित्रकी निष्ठा

१. दिसम्बर १९१२ में।

२. दक्षिण आफ्रिकामें गांधीजीके सहयोगी; सत्याग्रहके दिनोंमें इन्होंने अपना फार्म सत्याग्रहियोंके हवाले कर दिया था । देखिए खण्ड १० पृष्ठ २८०-८१ पा० टि०।

३. प्रथम महायुद्धके दिनोंमें जर्मनोंके विषय में ऐसी बातें कही जाती थीं।