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पत्र : कोतवालको

मुझे एसा कटु अनुभव हुआ है कि अपवाद रखनेपर माँ-बाप जब चाहते हैं बीमार पड़ जाते हैं। विद्यार्थी जबतक ब्रह्मचारी हैं तबतक विवाहों आदिमें शामिल न हों। उनको नये वातावरण में रखना चाहिए। मुझे ऐसा लगता है कि यदि ऐसा न किया गया तो उनके चरित्रका गठन न होगा।

पोशाक अभी तो एक ही रखी गई है, क्योंकि ऐसा करना कई कारणोंसे आव- श्यक है।

मेरा खयाल है कि दूधके विषयमें मैंने बहुत गहरा विचार किया है। दूध हमारे मांसाहारी युगकी देन है। उसमें इतने अधिक दोष हैं कि उसको बिलकुल छोड़ देना ही उचित है। अनेक लड़कोंने कई वर्ष तक यह प्रयोग किया है। इसमें किसीके स्वास्थ्यको कोई हानि नहीं दिखाई दी। विशेष मिलनेपर विचार करेंगे।

आश्रमके उद्देश्यको क्षति न पहुँचे, उस हद तक मैं जन-साधारणकी भावनाका ध्यान रखनेका प्रयत्न करूंगा।

अभी तक चार शिक्षक मिले हैं। एक यहीं रहेंगे। दूसरे स्थानीय हैं। वे पढ़ानेके लिए आ जाते हैं। यदि शिक्षक चरित्रवान् न हों तो हमारे काम नहीं आ सकते।

मोहनदासके प्रणाम

फिलहाल तो कपड़े धोनेके लिए चर्बी-रहित देशी साबुनका उपयोग कर रहा हूँ । उसके स्थानमें किसी दूसरी चीजकी खोजमें हूँ।

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यु ० २७९२ ) से तथा (जी० एन० ४११७) की फोटो-नकलसे।

९६. पत्र : कोतवालको

अहमदाबाद

जेठ सुदी १ [ जून १३, १९१५]

भाईश्री कोतवाल,

ऐसा लगता है कि आप मुझे भूल गये हैं। इसके साथ आश्रमके संविधानका मसविदा भेज रहा हूँ। उसे पढ़ लें और विचार करके अपनी सम्मति भेजें। अन्ना अहमदाबाद आ गये हैं। आप भी फुरसत होनेपर आकर आश्रम देख जाइये।

मोहनदासके वन्देमातरम्

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (जी० एन० ३६०७) की फोटो-नकलसे।

१. आश्रमके संविधानके मसविदेका उल्लेख होनेसे यह पत्र १९१५ में लिखा गया जान पड़ता है। यद्यपि इस तारीखको गांधीजी पूनामें थे, उन्होंने यह पत्र अहमदाबादका ठिकाना देकर लिखा है, क्योंकि वे उसी दिन पूनासे अहमदावादको रवाना होनेवाले थे।

२. गंगानाथ विद्यालय, बड़ौदाके अध्यापक हरिहर शर्मा । वे इन्हीं दिनों आश्रम में आकर गांधीजीके पास रहने लगे थे।