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९१. पत्र : कुँवरजी मेहताको

अहमदाबाद

वैशाख बदी ९ [ जून ६, १९१५]

भाई श्री कुंवरजी'

आपका पत्र मिला। साथका कागज पढ़ जायें। इससे आपके तीनों प्रश्नोंका उत्तर मिल जायेगा। श्री गोखलेको मैं प्रथम कोटिका व्यक्ति मानता हूँ। दूसरोंको मैं नहीं आँक सकता । अवकाश होने पर यहाँ आ जायें । १० तारीखको मैं पूना जाऊँगा । वहाँसे १५ तक लौटूंगा।


मोहनदासके वन्देमातरम्

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (जी० एन० २६६१) की फोटो-नकलसे।

९२. पत्र : पुरुषोत्तमदास ठाकुरदासको

अहमदाबाद

वैशाख बदी ११ [ जून ८, १९१५ ]

रा. श्री पुरुषोत्तमदासजी,

आपका रेवाशंकर भाईके नाम लिखा हुआ पत्र मुझे मिला है। आपके उद्गारोंके लिए कृतज्ञ हूँ।

साथका मसविदा' पढ़नेपर आपको मेरी प्रवृत्तियोंके विषयमें कुछ मालूम हो जायेगा। यदि आप अपनी सम्मति भेजेंगे तो आभार मानूंगा।

मोहनदास के वन्देमातरम्

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ५७००) से। सौजन्य : रमणलाल सरैया

१. यह पत्र १९१५ में लिखा गया जान पड़ता है, क्योंकि गांधीजी १० जून, १९१५ को अहमदाबादसे रवाना हुए थे और १६ जूनको पूनासे लौटे थे । देखिए “डायरी : १९१५ ”।

२. पत्र में संविधानके मसविदेका उल्लेख होनेसे यह १९१५ में लिखा गया जान पड़ता है।

३. राज्यमान राज्यश्री; गुजराती में आदर सूचक सम्बोधन । ४. सर पुरुषोत्तमदास ठाकुरदास; अर्थशास्त्री और बम्बई में रुईके प्रमुख व्यवसायी।

५. देखिए “आश्रमके संविधानका मसविदा", २०-५-१९१५ से पूर्व ।