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९०. पत्र : रणछोड़लाल पटवारीको

अहमदाबाद

वैशाख बदी ८ [ जून ५, १९१५]

आदरणीय श्री रणछोड़भाई,१

बहुत काम होनेसे पत्र जल्दी नहीं लिख सका; हरद्वारसे सब लोग तभी आनेवाले थे, इसलिए मैं न गोंडल आ सका और न [ रोजकोटमें] रुक सका। यहाँ रहनेके लिए दो बॅगले ले लिये हैं। [जमीन ] लेनेकी कोशिश अब करेंगे। हमें अपना खानेके खर्चका प्रबन्ध खुद करना है। बर्तन और औजार आदि सामान अहमदाबादने पूरा कर दिया है। अभी काम ठीक तेजीसे नहीं चला है, क्योंकि सामान बहुत देरीसे पहुँच रहा है।

क्या आप वहाँसे किसी व्यक्तिको देशी करघेका काम सिखानेके लिए भेज सकते हैं? देशी करघा दिला सकते हैं? देशी करधेका बना कपड़ा जुटा सकते हैं ?

कोई संस्कृत या गुजराती सिखानेवाला चरित्रवान् अध्यापक आपकी निगाहमें है ? हम उसे वेतन देंगे। कुछ समयके लिए मिल जाये तो काम चल जायेगा ।

इसके साथ संस्थाके संविधानका मसविदा है। इसे पढ़ लें और अपना मत एवं सुझाव भेजें। इसकी तीन नकलें भेज रहा हूँ। अधिक चाहिए तो मँगा लें।

[ नाम ] कौन-सा पसन्द है ? अथवा कोई दूसरा सुझाते हैं?

भाई द्वारकादासका स्वास्थ्य अब कैसा है?

मोहनदासके प्रणाम

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यु ० २७९६) से तथा जी० एन० ४११६) की फोटो-नकलसे।



१. हरद्वारसे मगनलाल और उनके साथियोंके अहमदाबाद आनेका और आश्रमके संविधानका उल्लेख होनेसे पत्र १९९५ में लिखा गया जान पड़ता है।

२. जीवन पर्यन्त गांधीजीके मित्र; पश्चिमी भारतकी कई रियासतोंके दीवान रहे ।

३. देखिए " आश्रमके संविधानका मसविदा", २०-५-१९१५ से पूर्व ।