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८७. पत्र : उमियाशंकरको

अहमदाबाद

वैशाख सुदी ६, शुक्रवार [ मई २१, १९१५]

चि० उमियाशंकर,

तुम्हारा पत्र मुझे मिल गया है। मैं राजकोट और लीमड़ी होकर कल ही आया हूँ। मेरा श्री हुसैन तैयबजी के साथ एसा निजी सम्बन्ध नहीं है कि मैं उन्हें पत्र लिख सकूं। किन्तु छबीलदासको तुरन्त अर्जी देनी चाहिए अथवा उसकी ओरसे तुम अर्जी दे दो। तुम मेरा नाम लिखकर कहना कि मैं उसे अच्छी तरह जानता हूँ और प्रमाणित कर सकता हूँ। इसके बाद वे मुझसे पूछेंगे तो मैं उसके सम्बन्धमें कह सकूंगा । तुम मुझे छोटूके बारेमें कुछ भेजनेवाले थे; उसका क्या हुआ ।

मोहनदासके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० १६३५) से। सौजन्य : सी० के० भट्ट

८८. पत्र : जी० ए० नटेसनको

अहमदाबाद

मई २८, १९१५

प्रिय श्री नटेसन,

३,००० रुपयेके चेकके साथ आपका पत्र मिला। रसीद इस पत्रके साथ भेज रहा हूँ। देखता हूँ, मेरी बंगलौरकी बातचीत बहुत तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत की गई है; और श्रीमती बेसेंटने भी मेरे साथ बिलकुल न्याय नहीं किया है। मैंने उसका विवरण परसों ही देखा है। वस्तुतः मैंने जो-कुछ कहा था वह तो उसकी व्यंग्यपूर्ण विकृति है। मैंने श्रीमती बेसेंटके पास प्रकाशनार्थ कोई भी स्पष्टीकरण नहीं भेजा। सुना है कि उन्होंने जो-कुछ प्रकाशित किया है उसे मेरे द्वारा भेजा गया स्पष्टीकरण कहा गया है। यदि आपने ये विवरण देखे हों तो मुझे उनकी प्रतिलिपि भिजवानेकी कृपा करें।

हृदयसे आपका,

मो० क० गांधी

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजी पत्र (जी० एन० २२२९) की फोटो-नकलसे।

१. गांधीजी राजकोट और लीमड़ोते २० मईको लौटे थे ।