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८६. पत्र: वी० एस० श्रीनिवास शास्त्रीको

अहमदाबाद

मई २०, [ १९१५]

प्रिय श्री शास्त्रियर,

मैं एक घरेलू कामसे राजकोट गया था । वहाँसे अभी लौटा तो आपके दो पत्र मिले। यदि आप ठीक समझें तो मेरी रायमें आपको सर विलियमका आमन्त्रण मान लेना चाहिए। जो विचार श्रीमती बेसेंटका है सम्भवतः वही फीरोजशाह मेहताका होगा । मेरी दृष्टिसे तो इतना ही काफी है कि सर विलियम आपसे मिलना चाहते हैं और जिस विषयको प्रतिपादित करनेकी आपसे अपेक्षा की जाती है आप उससे परिचित हैं। मण्डलके अध्यक्षके रूपमें आपकी इतनी साख है और होनी भी चाहिए कि उससे आपको वह दर्जा और अधिकार मिल जाता है जिसकी आपको अपने कार्य में आवश्यकता होगी।

और यदि आप जाते हैं तो मेरा खयाल है इसमें दो महीने तो लग ही जायेंगे । तब क्या ज्यादा ठीक काम किया जा सके इस दृष्टिसे आप इस असमें अपनी बीमारीसे छुटकारा नहीं पा सकते?

लगता है, नायकर और सुन्दरम् बहुत अच्छा काम कर रहे हैं।

कमसे-कम फिलहाल मैं यहाँ टिककर रहनेवाला हूँ।

हृदयसे आपका,

मो० क० गांधी

मैंने आपको जो पुस्तिका भेजी है उसमें परिवर्तन किया जा सकता है।

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजी पत्र ( जी० एन० ६२८९) की फोटो-नकलसे ।



१. इसमें सर फीरोजशाह मेहताका (जिनका नवम्बर, १९१५ में स्वर्गवास हो गया था) उल्लेख है; इसलिए इसका वर्ष १९१५ निश्चित किया गया है ।