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आश्रमके संविधानका मसविदा

मुहैया करती है, अधिक नहीं। अपनी सच्ची आवश्यकतासे अधिक आहार और वस्त्रादिका उपयोग करना भी चोरी है, तो व्रतका पालन करनेवाला इसे समझते हुए इसके अनुसार आचरण करेगा।

६. अपरिग्रह-व्रत

अधिक वस्तुओंका संग्रह न करना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि शरीरके रक्षण और पोषणके लिए जिन वस्तुओंकी आवश्यकता न हो उनका संग्रह न करना चाहिए, जैसे कुर्सीके बिना काम चल सकता हो तो उसको न रखे। इस प्रकार व्रतीको नित्य विचार करते हुए अपने जीवनको उत्तरोत्तर सरल बनानेका प्रयत्न करना चाहिए ।

उपव्रत

उक्त व्रतोंमें से अन्य दो उपव्रत निकल आते हैं।

१. स्वदेशी व्रत

स्वदेशी व्रतका पालन करनेवाला उन वस्तुओंका उपयोग कभी न करेगा जिनके निर्माणमें या जिनके निर्माताओं द्वारा असत्याचरणकी सम्भावना हो । उदाहरणार्थ मैंचेस्टर, जर्मनी या भारतके कारखानोंमें बने कपड़ेके निर्माणमें या उसके निर्माताओं द्वारा असत्याचरण नहीं किया जाता, सो नहीं कहा जा सकता। इसलिए इनका उपयोग वर्जित है। इसके अतिरिक्त कारखानोंमें कपड़ा बनानेवाले मजदूर बहुत कष्ट पाते हैं और अग्निका अत्यधिक प्रयोग होनेसे असंख्य जीवोंका नाश होता है। मशीनोंके काममें मज- दूरोंकी जो जानें जाती हैं और उस महाअग्निमें जो जीवोंका नाश होता है, वह अवर्ण- नीय है। इसलिए विदेशों में बना कपड़ा और कारखानोंमें मशीनोंसे बुना गया कपड़ा उक्त तीन प्रकारकी हिंसासे दूषित होनेके कारण वर्जित है। ध्यान देनेसे समझमें आ सकता है कि विदेशी कपड़ेके व्यवहारसे अस्तेय और अपरिग्रहके व्रत भंग होते हैं। हम रूढ़िगत प्रथाका अनुसरण करते हुए सौन्दर्य-वृद्धिके निमित्त अपने देशमें कम मेहनतसे बने कपड़ेका त्याग करके मशीनोंसे बुना मिलका कपड़ा पसन्द करते हैं। फिर कृत्रिम सौन्दर्यवृद्धि ब्रह्मचर्य में बाधक है, इसलिए इस व्रतके पालनार्थ भी ऊपर बताया गया मशीनोंका बुना कपड़ा पहनना वर्जित ठहरता है। शुद्ध स्वदेशी व्रतका व्रती इसी देशमें हाथ-करघोंपर बुना हुआ सादा कपड़ा पहनेगा और सो भी सादे ढंगसे सिला हुआ। इसका अर्थ यह है कि वह विदेशी काँट-छाँट और बटनोंका उपयोग भी त्याग देगा। दूसरी वस्तुओंके विषय में भी ऐसा ही समझना चाहिए।

२. निर्भयता व्रत

जो मनुष्य भयके वशीभूत हो जाता है वह सत्य आदि व्रतोंका पालन नहीं कर सकता। इसलिए व्यवस्थापक सदा ज्ञानपूर्वक निर्भयतासे व्रतका पालन करेंगे और राजा, प्रजा, जाति, कुटुम्ब, चोर, लुटेरे, व्याघ्र आदि पशुओं तथा मृत्युके भयसे भी मुक्त होनेका प्रयत्न करेंगे। वे अपनी तथा दूसरोंकी रक्षा सत्याग्रह अर्थात् आत्म-बलसे करेंगे।

१. तीसरी आवृत्तिमें यह वाक्य हटा दिया गया था।

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