पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 13.pdf/१२५

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
९५
आश्रमके संविधानका मसविदा

तो टाटमें लपेटकर सीना पड़ेगा या कोई स्नेही मित्र जाये तो वह साथ ला सकता है। जिन बक्सोंमें ताले न हों उन्हें अच्छी तरहसे बाँधना। जिनमें काँचकी चीजें हों उनके बारेमें अधिक सावधानी रखना।

चि० मगनलालका तार आया है। इसमें उसने लिखा है कि वे सब गुरुवारको हरद्वारसे रवाना होंगे। इसलिए उन्हें शनिवार या रविवारको अहमदाबाद पहुँचना चाहिए।

सामलदास मेरे साथ आया है। वह रहेगा या क्या करेगा, यह कह नहीं सकता।

आदरणीय खुशाल भाईसे बहुत बातें हुई हैं। मैं अपनेको सदा उनका ऋणी ही पाता हूँ। उन्होंने मुझे जितना सन्तोष दिया है नन्दकौर भाभी, गंगा भाभी और गोकी बहिनसे' मुझे उतना ही असन्तोष मिला है।

अधिक मिलनेपर।

बापूके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ५६७४) से । सौजन्य : नारणदास गांधी


८५. आश्रमके संविधानका मसविदा

[मई २०, १९१५ से पूर्व]

यह केवल एक कच्ची नियमावली है जो मित्रोंकी सम्मति जाननेके लिए छापी गई है। यह समाचारपत्रोंमें प्रकाशनके लिए नहीं है।

सत्याग्रहाश्रम ?५
देशसेवाश्रम ?
सेवा-मन्दिर ?
उद्देश्य

इस आश्रमका उद्देश्य आजन्म देश-सेवाकी शिक्षा प्राप्त करना और देश-सेवा करना है।

१. गांधीजीकी बड़ी बहिन रलियात बेन ।

२. इस तिथिको आश्रमकी स्थापना की गई थी ।

३. देखिए “पत्र: रणछोड़लाल पटवारीको”, ५-६-१९१५ और “पत्र : पुरुषोत्तमदास ठाकुरदासको”, ८-६-१९१५ ।

४. तीसरी आवृत्ति, जो ७ नवम्बर १९१५ को प्रकाशित हुई थी, के प्रारम्भिक वाक्य इस प्रकार थे : "इस आवृत्तिमें मित्रोंके सुझावों और अपने अनुभवके आधारपर कुछ परिवर्तन किये गये हैं" । ये परिवर्तन यहाँ पाद-टिप्पणियोंमें सूचित कर दिये गये हैं

५. तीसरी आवृत्तिमें इस शीर्षकके नीचे निम्न टिप्पणी दी गई है : (वैशाख वदी ६, गुरुवार, २० मई, १९१५ को अहमदाबादमें स्थापित )