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८२. पत्र: वी० एस० श्रीनिवास शास्त्रीको

अहमदाबाद

मई १४, १९१५

प्रिय श्री शास्त्रियर,

मैं आपसे आपके स्वास्थ्यके सम्बन्धमें व्यक्तिगत चर्चा करना चाहता हूँ। मुझे इस सम्बन्धमें बहुत चिन्ता रहती है। मुझे विश्वास है कि आप समय रहते, अपने आहारको नियमित करके और जल-चिकित्साका आश्रय लेकर पूर्ण स्वस्थ हो सकते हैं। समाज और देशके प्रति आपका यह कर्त्तव्य है कि जब इतनी आसानीसे स्वास्थ्य-लाभ किया जा सकता है, तब आप स्वास्थ्य लाभ कर लें। मेरी बताई चिकित्सामें आपको एक दिनके लिए भी सार्वजनिक कार्य रोकनेकी आवश्यकता न होगी । आवश्यकता केवल इस बातकी है कि चिकित्सा अत्यन्त नियमपूर्वक की जाये। इसका परिणाम थोड़े दिनोंमें ही दिखाई देने लगेगा। उसके लिए लम्बी चिकित्सा आवश्यक नहीं। नीचे चिकित्साकी तफसील देता हूँ:

दिनमें दो बार कमसे-कम बीस-बीस मिनट तक कटिस्नान; कटिस्नान भोजनके बाद तीन घंटे तक न किया जाये । प्रातः-सायं दो घंटे खुली हवामें धीरे-धीरे टहलना।

दिनमें केवल दो बार भोजन। शामका भोजन सूर्यास्तके पूर्व कर लिया जाये।

भोजनका प्रत्येक ग्रास धीरे-धीरे चबाया जाना चाहिए जिससे वह चिकना गाढ़ा द्रव होकर पेटमें जाये, ठोस लुगदीके रूपमें नहीं। आपने भोजन भली-भांति चबाया है या नहीं, यह आपको सदा अपने मलसे मालूम हो जायेगा।

आहारमें ये चीजें हों -- केले, आम, सन्तरे, जई, अंजीर (सूखे और ताजे), सुलताना (बिना बीजका मुनक्का), अंगूर, नीबू, इमली, पपीता, अनन्नास, आलू बुखारा । नारियल, मूंगफलियाँ, बादाम, पिस्ते, अखरोट और आवश्यकता हो तो जैतूनका तेल।

दिनमें केवल दो प्रकारके गिरीदार मेवे खाये जायें। दोनोंकी मात्रा दिन-भरमें चार औंससे अधिक न हो । आरम्भमें, अर्थात् पहले चार दिन गिरीदार मेवे लेना बिलकुल आवश्यक नहीं है; वे बादमें धीरे-धीरे भोजनमें शामिल किये जा सकते हैं ।

नीबू या इमलीमें से कोई भी चीज ली जा सकती है। अंजीर, छुहारे और अन्य मेवे भलीभाँति धो लिये जायें और छः घंटे भिगोनेके बाद ही खाये जायें। वे जिस पानीमें भिगोये जायें वह पी लिया जाये ।

यदि जैतूनका तेल लिया जाये तो प्रतिदिन एक औंससे अधिक न लिया जाये । अन्य फलोंके साथ प्रतिदिन मामूली बड़े नौ केले काफी होंगे।

प्रत्येक व्यक्ति अपने हिसाबसे मात्रा स्वयं कम-ज्यादा कर सकता है।

१. (१८६९-१९४६) विद्वान, राजनीतिज्ञ, भारत सेवक समाज (सर्वेन्ट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी) के अध्यक्ष (१९१५-२७) ।