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८१. पत्र : मगनलाल गांधीको

[अहमदाबाद]

वैशाख बदी ०)) गुरुवार [ मई १३, १९१५]

चि० मगनलाल,

आज गुरुवार है। आजका लिखा पत्र तुम्हें सोमवार या रविवारको मिल जायेगा । यहीं बँगला लेनेका निर्णय किया है। जमीन वगैरह फिर देखेंगे। बँगलेका किराया और औजारों आदिका खर्च अहमदाबाद देगा; और बर्तन आदिका भी । खानेका खर्च हम उठा लेंगे। मैं आज राजकोट जा रहा हूँ। ज्यादासे-ज्यादा मंगलवार तक अहमदाबाद वापस लौट आऊँगा। तुम वहाँसे सोमवारको रवाना हुए तो मंगलवारकी सुबह दिल्ली पहुँच कर, बुध- वारको अहमदाबाद पहुँच सकोगे। तारीख तय करके रवानगीका तार देना । कब पहुँचोगे यह तारमें लिखना। इसके साथ २०० रुपये के नोट भेजता हूँ। यदि मैं भूलता नहीं तो तुम्हें १६ टिकट लेने होंगे।

अब पंडितको कलकत्ता भेज देना। फिर भी यदि तुम्हें ऐसा लगे कि उसे तुम्हारे साथ आना चाहिए तो वह आ जाये । किन्तु अपना किराया उसे स्वयं देना चाहिए । तुम्हें जिस दिन यह पत्र मिलेगा उस दिन मैं राजकोटमें रहूँगा, और तुम्हारे पहुँचनेके दिन अहमदाबादमें। तुम्हें सबसे अधिक सुविधाजनक गाड़ी दिल्ली होकर मिलेगी। लक्सर, सहारनपुर, दिल्ली, अजमेर, पालनपुर, और अहमदाबाद। तुम हरद्वारसे अहम- दाबादका सीधा टिकट लोगे तो उससे पाँच रुपयेकी बचत होगी। किराया पहले सौ मीलका ढाई पाई प्रति मील और फिर दो पाई प्रति मील बैठता है। मेलमें इन्टर ही है। जिसमें तीसरा दर्जा भी होता है, वह एक्सप्रेस दिल्लीसे चलती है। और २७ से ३० घंटे में अहमदाबाद पहुँचती है। ऐसा जान पड़ता है कि तुम्हें लक्सर, सहारनपुर और दिल्ली, तीन जगह गाड़ी बदलनी ही पड़ेगी। यदि वहाँ खजूर आदि अधिक बचे हों तो उन्हें खरीद कर ले आना ठीक होगा। गुरुकुलके लोगोंको ऐसा न लगे कि हम वहाँ भाररूप थे।

अब और कुछ तो लिखनेको नहीं है।

बापूके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ५६७३ ) से । सौजन्य : राधाबेन चौधरी

१. अहमदाबाद में बँगला किरायेपर लेनेके उल्लेखसे ऐसा प्रतीत होता है कि यह पत्र १९१५ में लिखा गया था। गुजरात में कृष्ण पक्षकी १५ के स्थानमें ०)) लिखा जाता है।

२. आश्रमके लिए।

३. गुरुकुल काँगड़ी, हरद्वार।