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७७. बंगलौरके नागरिकों के साथ वार्तालाप

मई ८, १९१५

आज कुछ नागरिक श्री गांधी के निवास स्थान शेषाद्रि रोड, बंगलौरमें उनसे मिले।भारतकी गरीबीके बारेमें पूछे जानेपर श्री गांधीने कहा कि देश दिनपर-दिन दरिद्र होता जा रहा है और इस दरिद्रताका कारण देशी करघोंकी बुनाईका काम खत्म करनेवाली भीषण प्रतिद्वन्द्विता और इस देशसे कच्चे मालका बराबर बाहर भेजा जाना है।

उन्होंने कहा:

हमारा रहन-सहन एकदम यूरोपीय ढंगका होता जा रहा है और इस तरह हम बहुत हदतक अपना आत्माभिमान खो बैठे हैं। हम लोग अंग्रेजीमें ही सोचते और बातचीत करते हैं। इस प्रकार हम लोग अपनी देशी भाषाओंको कंगाल बना रहे हैं और जनताकी भावनाओंसे विमुख होते जा रहे हैं। अपनी मातृभूमिकी सेवा करनेके लिए अंग्रेजी भाषाका ज्ञान बहुत आवश्यक नहीं है।

वर्ण-व्यवस्थाका उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा:

जाति-व्यवस्था हिन्दू-धर्मका बड़ा बल है और वह उसका रहस्य है।

श्री गांधीका घर

जब श्री गांधीसे प्रश्न किया गया कि आप भारतमें कहाँ बसेंगे तब उन्होंने उत्तर दिया:

मुझपर जोर डाला जा रहा कि मैं बंगालमें रहूँ। लेकिन मुझे गुजरातकी बहुत- सी बातोंका ज्ञान है और वहाँसे मेरे पास बहुत-से पत्र भी आ रहे हैं।

पुस्तकालयकी आवश्यकता

देशी भाषाओंका साहित्य बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। मैं एक ऐसा पुस्तकालय चाहता हूँ जिसमें सब [ भारतीय भाषाओंकी ] पुस्तकें संगृहीत की जायें। मित्रोंसे मेरी प्रार्थना है कि वे ऐसा पुस्तकालय स्थापित करनेके लिए आर्थिक सहायता दें।

आधुनिक सभ्यता एक अभिशाप

यूरोप और भारत, सभी जगहोंमें आधुनिक सभ्यतासे बड़ी भारी हानि हो रही है । युद्ध इस आधुनिक सभ्यताका प्रत्यक्ष परिणाम है; जिसे देखो वही युद्धकी तैयारियाँ कर रहा है।

बड़ा भारी नैतिक बल

सत्याग्रह एक जबर्दस्त नैतिक बल है; वह दुर्बलके लिए भी है और बलवान्के लिए भी। आत्मिक बल अपने-आपपर निर्भर करता है। आदर्शोंको आचारमें उतारना चाहिए, नहीं तो वे कारगर नहीं हो पाते। आधुनिक सभ्यता पाशविक बल है।

आदर्शको जानना एक बात है, और उसको कार्य रूपमें परिणत करना दूसरी बात है; उससे अनुशासनमें वृद्धि होती है और फलस्वरूप अधिक सेवा की जा सकती है;