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भाषण : बंगलौरमें

और धर्ममय बनाना चाहता हूँ। मैंने अपने-आपको उसी आदर्शके लिए न्यौछावर कर दिया है। में इसमें असफल हो सकता हूँ लेकिन जिस हदतक असफल होऊँगा उस हदतक यही मानूंगा कि मैं अपने गुरुका योग्य शिष्य नहीं था।

देशके राजनैतिक जीवनको धर्ममय बनानेका अर्थ क्या है? अपने-आपको धर्ममय बनानेका अर्थ क्या है ? यह प्रश्न मेरे मनमें कई बार उठा है। आपके लिए इसका एक अर्थ हो सकता है, मेरे लिए दूसरा । भारत सेवक समाज (सवेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी) के विभिन्न सदस्यों तक के लिए इसके विभिन्न अर्थ हो सकते हैं। अर्थकी यह कठिनाई एक बड़ी कठिनाई है और इससे वे सब लोग उलझनमें पड़ जाते हैं जो अपने देशसे प्रेम करना चाहते हैं, जो अपने देशकी सेवा करना चाहते हैं और जो अपने देशका सम्मान करना चाहते हैं। मुझे [ इसका यह अर्थ ] लगता है कि राजनैतिक जीवन व्यक्तिगत जीवनकी एक झंकार होना चाहिए; और ये दोनों अलग-अलग नहीं हो सकते ।

में उन साधुमना राजनीतिज्ञके समीप उनके जीवनके अन्तकाल तक रहा और मैंने उनमें कोई अहंकार नहीं पाया। समाज सेवा संघके भाइयो, मैं आपसे पूछता हूँ कि क्या आपमें अहंकार नहीं है? यदि श्री गोखले चमकना चाहते थे, अपने देशके राजनैतिक क्षेत्रमें चमकना चाहते थे, तो इसलिए नहीं कि उनको जनतामें वाहवाही मिले, बल्कि इसलिए कि उनके देशको लाभ पहुँचे। उन्होंने अपने प्रत्येक गुणको विकसित किया; इसलिए नहीं कि संसारमें उनकी प्रशंसा हो बल्कि इसलिए कि उनके देशको उससे लाभ पहुँचे। उन्होंने जनतासे वाहवाही नहीं चाही; फिर भी वह उनपर बरसाई गई, उनपर लादी गई। वे चाहते थे कि उनके देशको लाभ पहुँचे और यही महान प्रेरणा हमें उनसे मिलती है।

बहुत-सी बातें हैं जिनके लिए भारतको दोष दिया जाता है; और उनमें तथ्य भी है। और यदि आप अपनी कमियोंमें आज एक और [ वचन और कर्मकी भिन्नता ] जोड़ लें तो इसका दोष आपपर ही नहीं, आजके उत्सवमें भाग लेनेके कारण मुझपर भी होगा। परन्तु अपने देशवासियोंपर मुझे बड़ा भरोसा है।

आज आप मुझसे इस चित्रका अनावरण करनेके लिए कहते हैं। मैं सच्चे हृदयसे ऐसा कर रहा हूँ, और सचाई ही हमारे जीवनका ध्येय होना चाहिए। (देरतक हर्ष ध्वनि और तालियाँ)

[अंग्रेजीसे]

इंडियन रिव्यू, मई १९१५