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वक्तव्य : भारतीय दक्षिण आफ्रिकी संघ, मद्रासकी सभामें

अनुसार हुआ हो चाहे इस्लामी रीतिके अनुसार, वह दर्जा दिलाना जो दक्षिण आफ्रिका- में उन्हें सर्ल फैसलेके' नामसे प्रसिद्ध निर्णयके पूर्व प्राप्त था; (३) उस तीन पौंडी वार्षिक व्यक्ति-करको रद कराना जो प्रत्येक भूतपूर्व गिरमिटिया भारतीय, उसकी पत्नी और बच्चोंको - लड़का और लड़की दोनोंको, लड़कोंको १६ वर्षका हो जानेके बाद और लड़कियोंको १२ वर्षकी हो जानेके बाद -- नेटाल प्रान्तमें स्वतन्त्र नागरिकोंके रूपमें रहनेका निश्चय करनेपर देना पड़ता था; (४) निहित अधिकारोंका खयाल रखते हुए उन वर्तमान कानूनोंका उचित अमल जो खास तौरसे ब्रिटिश भारतीयोंपर लागू होते हैं। ये सब मुद्दे गत वर्षके समझौतेके अनुसार पूर्ण रूपसे प्राप्त कर लिये गये हैं। और जहाँतक कानूनकी दृष्टिसे आवश्यक था, ये सब माँगें उस विधेयकमें शामिल कर ली गई हैं जो भारतीय राहत विधेयकके नामसे प्रसिद्ध है। वैसे उल्लि- खित विधेयकके पास होनेके तुरन्त बाद जनरल स्मट्स और मेरे बीच हुए पत्र-व्यवहारमें भी ये मुद्दे मिलेंगे। इस स्थितिमें और चूंकि भारतीय दक्षिण आफ्रिकी संघका संगठन इस संघर्षमें सिर्फ सहायता पहुँचाने के लिए हुआ था, संघका अपने आपको विघटित करना ही ठीक होगा। मैं उस धनकी व्यवस्थाका भी जिक्र कर देना ठीक समझता हूँ जो मुझे भारतसे और साम्राज्यके दूसरे भागोंसे भेजा गया था। संघर्षके दौरान विभिन्न अवसरोंपर आय-व्ययका पूरा ब्योरा प्रकाशित किया जाता रहा है। पहला ब्योरा एक सार्वजनिक पत्रके साथ श्री गोखलेको भेजा गया था। दूसरा ब्योरा एक खुले पत्रके साथ श्री टाटाको भेजा गया था। तीसरा ब्योरा तैयार है। उसे श्री गोखले और बम्बईकी सामान्य समितिके साथ सलाह-मशविरेके बाद प्रकाशित कर- नेकी बात थी। श्री गोखलेकी यही इच्छा थी। अब मैं श्री नट और समितिके मन्त्री श्री पेटिटसे मिलने के लिए रुका हूँ ताकि ब्योरा प्रकाशित किया जा सके। इस समय भारत में अपने परिवारों सहित लगभग ३० सत्याग्रही हैं जिनको सहायता देनेकी आवश्यकता है। इनमें उन दो व्यक्तियोंकी विधवाएँ और बच्चे भी शामिल हैं, जिनकी संघर्ष के दौरान गोलोसे मृत्यु हुई थी। इसलिए मेरा सुझाव है कि बची हुई रकम, जो अब भी भारतीय दक्षिण आफ्रिकी संघके पास हैं, उनकी सहायताके लिए दे डालना अच्छा होगा। इस समय में संघको संघर्षके संकटपूर्ण दिनोंमें की गई उसकी

१. मार्च १४, १९१३ को दिये गये न्यायाधीश सलके इस फैसलेमें ऐसे विवाहोंको गैर-कानूनी करार दिया गया था जो ईसाइयोंकी रीतिसे सम्पन्न नहीं हुए थे और जिनका विधिवत् पंजीयन नहीं कराया गया था।

२. देखिए खण्ड १२, परिशिष्ट २५ ।

३. देखिए खण्ड १०, पृष्ठ २४५-४९।

४. देखिए खण्ड ११, पृष्ठ २४५-४९ ।

५. देखिए “पत्र: जे० बी० पेटिटको ”, १६-६-१९१५।

६. बादमें लीगने एक प्रस्ताव द्वारा अपने आपको विघटित करते हुए बची हुई रकम गांधीजीको भेंट कर दी थी।

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