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भारतीय महिलाएँ सत्याग्रहीके रूपमें


सम्मुख पंजीकृत नहीं किये गये हों, लागू होती है। इसलिए मेरा निवेदन है कि बहुविवाहका प्रश्न बिल्कुल नाहक उठाया गया है।

मेरी समितिको विश्वास है कि सरकार इससे उत्पन्न प्रश्नके फौरी तकाजेको समझकर संघके विवाह-सम्बन्धी कानूनोंको संसदके वर्तमान अधिवेशनमें ही इस प्रकार संशोधित कर देगी जिससे भारतीय विवाहों को कानूनमें मान्य करनेकी पहली प्रथा पुनः स्थापित हो सके।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २४-५-१९१३

४७. भारतीय महिलाएँ सत्याग्रहीके रूपमें

ट्रान्सवाल भारतीय महिला संघ (ट्रान्सवाल इंडियन विमेन्स एसोसिएशन) ने माननीय गृह-मन्त्रीको निम्नलिखित तार भेजा है :

ट्रान्सवाल भारतीय महिला संघकी समितिने सर्ल-निर्णयको देखते हुए दक्षिण आफ्रिकाकी अधिवासिनी भारतीय महिलाओं अथवा संघमें निवासके अधिकारी अपने पतियों के साथ प्रवेश करनेकी अधिकारिणी महिलाओंकी स्थितिपर सावधानीके साथ विचार किया है और वह इस निष्कर्ष पर पहुँची है कि उक्त निर्णयसे भारतीय नारियोंके सम्मानको धक्का लगा है। इसलिए समिति सम्मानपूर्वक विश्वास करती है कि सरकार कानून में ऐसा संशोधन कर देगी जिससे भारतीय धार्मिक रीति-रिवाजके अनुसार किये गये भारतीय विवाह, जो भारतमें वैध माने जाते हैं, यहाँ भी वैध मान्य कर लिये जायेंगे। मुझे सरकारको यह भी सूचित करना है कि संघकी सदस्याओंकी भावना इस बारेमें इतनी तोब है कि यदि सरकार इस प्रार्थनाको स्वीकार करने में असहोगी तो वे सर्ल-निर्णय द्वारा किये गये अपमानको सहन करने की अपेक्षा सत्याग्रह करेंगी और अपने समाजके पुरुषोंके साथ कैद भुगतेंगी।[१]

सोंजा श्लेसिन,
अवैतनिक मन्त्री

हमें मालूम हुआ है कि उक्त तार जोहानिसबर्गकी हिन्दू-धर्म, इस्लाम और ईसाई धर्म माननेवाली चालीससे अधिक भारतीय महिलाओंके निर्णयपर भेजा गया था।

  1. १. इस तारपर ४ मई, १९१३ की तारीख पड़ी है, और अनुमानत: इसका मसविदा भी गांधीजीने हो तैयार किया था। इसके नीचे दी गई सामग्री इंडियन ओपिनियनमें सम्पादकीय “ टिप्पणी" के रूपमें प्रकाशित की गई थी।