होती है वह और अधिक आर्द्र वायुमण्डलवाले स्थान में जानेसे दूर नहीं हो सकती। कई बार ऐसा होता है कि हवा बदलनेका परिणाम ठीक नहीं होता। इसका कारण यह होता है कि वायु-परिवर्तन बिना समझे-बूझे किया जाता है। इसके सिवा और भी अनेक बार लाभ नजर नहीं आता। कारण यह होता है कि आब-हवा तो ठीक होती है किन्तु दूसरी आवश्यक बातोंका पालन नहीं किया जाता जिनके कारण वायु-परिवर्तनसे होनेवाले लाभ भी नहीं मिल पाते। पाठकोंको हम हिदायत करना चाहते हैं कि इस
लेखमालाके प्रथम भागमें हवाके सम्बन्धमें जो प्रकरण लिखा जा चुका है, उसीके साथ मिलाकर इस प्रकरणको पढ़ा जाये। पिछले प्रकरणमें हमने स्वास्थ्यके साथ हवाका क्या सम्बन्ध है, यह बतलाया है और हवाके सम्बन्धमें सामान्य चर्चा की है। इस
प्रकरणमें इलाजके नाते हवाका विवेचन किया गया है। अत: पिछले प्रकरणको इसीके साथ पढ़नपर बात ठीक तौरसे समझी जा सकेगी।
इंडियन ओपिनियन, ३-५-१९१३
४६. पत्र: गृह-सचिवको[१]
[जोहानिसबर्ग
मई ७, १९१३ के बाद]
मेरे इसी ४ तारीखके[२] तारके उत्तरमें आपने ७ तारीखको जो पत्र भेजा है, उसके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ।
मेरी समितिको भय है कि सरकारने श्री सर्लके फैसलेका जो अर्थ लगाया है, वह भारतीय समाज द्वारा किये गये अर्थसे भिन्न है। आप कहते हैं कि "आपने अपने तारमें न्यायमूर्ति श्री सर्लके अभी हाल में दिये गये फैसलेका उल्लेख किया है, जो बहु-पत्नीक विवाहको मान्यता देनेवाले रीति-रिवाजों द्वारा सम्पन्न विवाहोंके प्रश्नके सम्बन्धमें है।"
मैं विनम्रतापूर्वक यह कहना चाहता हूँ कि मेरे संघके लेखे श्री सर्लका फैसला बहुपत्नीक विवाहोंके सम्बन्धमे कदापि नहीं है। मेरी समितिके विनम्र मतसे न्यायमूर्ति सर्लका निर्णय साफ कहता है : “इस मामले में कुल प्रश्न ही यह है कि इस्लामी रिवाजके अनुसार विवाहित पत्नी प्रवासी अधिनियमके अर्थके अन्तर्गत पत्नी है या नहीं।" और जो बात इस्लामी रिवाजके अनुसार किये गये विवाहोंपर लागू होती है, वह हिन्दू-धर्मके रिवाजों या पारसी धर्मके रिवाजोंके अनुसार किये गये विवाहों या ईसाई-धर्मके अतिरिक्त अन्य किसी भी धर्मके रिवाजोंके अनुसार किये गये उन सभी विवाहोपर, जो अधिकारीके