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आरोग्यके सम्बन्धमें सामान्य ज्ञान [१८]


भी कभी कोई रोग हो जाये और यदि उसे साधारण उपचारोंका अनुभव हो तो वह बिना घबराये और वैद्यों, हकीमोंके पीछे मारे-मारे फिरनेके बजाय स्वयं तत्काल कुछ उपाय कर सके, ये अगले प्रकरण इसी हेतुसे लिखे जायेगे।

हम देख चुके हैं कि हवा स्वास्थ्य सम्पादन करने में सर्वोपरि महत्त्वपूर्ण वस्तु है, उसी प्रकार हवा रोगोंका नाश करने के लिए भी बड़ी कीमती चीज है। उदाहरणके लिए यदि किसी मनुष्यकी संधियाँ जकड़ गई हों और उसे गर्म हवाकी भाप दी जाये तो तत्काल पसीना छूटेगा और उसकी संधियाँ नरम पड़ जायेंगी। इस प्रकार जो भाप दी जाती है उसे "टरकिश बाथ" कहते है।

जिस मनुष्यका शरीर आगसे झुलसता-सा प्रतीत हो, उसे एकदम वस्त्रहीन करके खुली हवामे सुलाया जाये तो उसकी गर्मीकी तीव्रता तत्काल कम हो जायेगी, और उसकी बेचैनी दूर होगी। जब उसका शरीर ठंडा हो जाये तब उसे वस्त्र उढ़ा दिया जाये; इससे पसीना आयेगा और उसका बुखार उतर जायेगा। हम लोगोंकी ऐसी कुछ धारणा है कि बुखार हो और रोगी मारे गर्मी के व्याकुल हो रहा हो तो भी दरवाजे और खिड़कियाँ बन्द ही रखी जानी चाहिए और उसके कान और सिर ढके रहने चाहिए, और उसे भरपूर कपड़े ओढ़े रहना चाहिए। यह मान्यता सरासर भ्रमपूर्ण है। इससे तो रोगीकी व्याकुलता बढ़ती है और वह निर्बल पड़ जाता है। रोगीको इस प्रकार ढाँप देनेसे बार-बार पसीना आता है और बुखार देखनेपर थर्मामीटरका पारा ठीक तापमान बताता नहीं जान पड़ता। इससे रोगी कमजोर हो जाता है। गर्मीका बुखार हो तो ऊपर सुझाया हुआ उपचार करते हुए किसीको भी डरनेका कारण नहीं है। इसका लाभ तो वह तत्काल ही देख सकता है। इससे हानि होनेकी तो कुछ भी सम्भावना नहीं है। हाँ, इतनी सावधानी अवश्य रखनी चाहिए कि खुला रखा जानेपर रोगी काँपने न लगे। रोगी यदि ठंड महसूस करे तो समझ लेना चाहिए कि दाह अत्यन्त तीव्र नहीं है। रोगी यदि नग्नावस्थामें बाहर खुला न रह सके तो भी उसे खुली हवामें कपड़े उढ़ाकर सुलाने में तो कभी नुकसान नहीं हो सकता।

लम्बी मुद्दतके बुखार या किसी दूसरे रोगके लिए हवा बदलना एक अक्सीर इलाज है। वायु-परिवर्तनका रिवाज भी हवाके इलाजका ही एक अंग है। अनेक बार घर बदल देनेका भी रिवाज है। कई लोगोंकी मान्यता है कि जिस घरसे बीमारी दूर होती ही नहीं, उसमें भूत-प्रेत होते हैं । यह तो निरा बहम ही है । भूत-प्रेत तो हवाको विकृतिमें बसे होते हैं। सो, घरके बदल देनेपर वायु-परिवर्तन भी हो जाता है- यही बड़ा लाभ है। वायुका हमारे शरीरके साथ कुछ ऐसा गाढ़ा सम्बन्ध है कि उसमें थोड़ा भी परिवर्तन होनेपर उसका बुरा या भला परिणाम इसपर हुए बिना नहीं रहता। पैसेवाले लोग दूर देशोंमें जा सकते हैं, किन्तु गरीब यदि पासके गाँव या दूसरे घरमें जाये तो भी लाभ हो सकता है। रोगीको एक कमरेसे दूसरे कमरेमें ले जाने पर भी थोड़ा लाभ तो हो ही सकता है। परिवर्तन चाहे घरका हो, कमरेका हो या गाँवका, परन्तु हम जिस स्थानको छोड़कर जा रहे हैं, वहाँसे उस स्थानकी आबो-हवा अच्छी होनी चाहिए, यह सुझानेकी आवश्य- कता नहीं। नम आबो-हवाके कारण जो बीमारी