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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


ही चाहिए। हमें दूसरे लज्जित करें, इसकी अपेक्षा हमारे अपने अन्तरकी लज्जा हमारे लिए अधिक दुःखदायी होती है। यदि किसी में शक्ति हो तो उसे जेल जानेकी इच्छा करनी ही चाहिए। और न जा पाये तो शरमाना ही चाहिए। जानेकी शक्ति होते हुए भी न जाना ठीक नहीं है। जो प्रस्ताव किया गया है, उसका यह अर्थ भी नहीं है। प्रस्तावका अर्थ यह है कि कोई व्यक्ति जाना तो चाहता है, लेकिन लाचारीके कारण नहीं जा सकता तो वह दोषी नहीं है। इस तरह अपनी किसी लाचारीके कारण न जा सकनेवाले भारतीयोंपर बड़ी जिम्मेदारी आती है। उन्हें बहुत परिश्रम करना पड़ेगा। वे अथक परिश्रम करके इस लड़ाईको दूसरी तरहसे मदद पहुँचायेंगे। ऐसे भारतीयोंको समझना चाहिए कि लन्दनकी हमारी समितिके खर्चकी जिम्मेदारी उठानेसे हमारी लड़ाईको बल मिलेगा। यह भी सम्भव है कि उस समितिकी सहायताके कारण संघर्ष शुरू ही न करना पड़े, इसलिए उस समितिका आर्थिक बोझ उठाने के लिए आजसे ही अपनी जेबोंमें हाथ डालें और समितिकी स्थितिको मजबूत करें। इसका यही मौका है। श्री गोखले विलायतमें सदा नहीं बैठे रहेंगे। यदि समितिकी नींव इस समय मजबूत न की गई तो बादमें अवसर बीत जायेगा। इसलिए जेल न जानेवालोंका यह एक तात्कालिक कर्त्तव्य है और हमें आशा है कि नेटाल, केप तथा ट्रान्सवाल -तीनों स्थानोंसे इस सम्बन्धमें मदद मिलेगी। यदि लड़ाई शुरू हो तो हम जेल-यात्रियोंके कुटुम्बियोंकी फिक्र करेंगे और उनका काम सँभालेंगे, ऐसा निश्चय करके आजसे ही तैयारी शुरू कर देनी चाहिए। और इस दृष्टि से यह खोज निकालना चाहिए कि जेल कौन-कौन जायेगा और इस खोजके साथ ही उनकी सहायता करनेकी व्यवस्थाका प्रयत्न करने लगना चाहिए। यदि ऐसा हुआ तो इस बार लड़ाईका रंग खूब निखरेगा, वह ज्यादा उज्ज्वल और ज्यादा शुद्ध होगी।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ३-५-१९१३

४५. आरोग्यके सम्बन्धमें सामान्य ज्ञान [-१८]

कुछ उपचार : १. हवा

स्वास्थ्य-रक्षा किस प्रकारकी जाये, उसका मूल आधार क्या है और उसे बनाये रखनेके लिए क्या करना जरूरी है-- इसकी चर्चा हम कर चुके । सभी मनुष्य यदि अपना स्वास्थ्य बनाये रखनेके सारे नियमोंका पालन करें और स्वास्थ्य सम्पादनके लिए अखण्ड ब्रह्मचर्यका पालन करें तो जो प्रकरण अब आगे लिखे जा रहे हैं उनकी जरूरत ही नहीं हो; क्योंकि ऐसे लोगोंको शारीरिक अथवा मानसिक व्याधि होना सम्भव ही नहीं है। लेकिन ऐसे स्त्री-पुरुष शायद ही मिल सकते हों। ऐसे भाग्यशाली व्यक्ति बिरले ही होते हैं, जिन्हें कभी कोई रोग न हुआ हो। साधारण मनुष्य तो सदैव व्याधियोंसे ग्रस्त रहता है। यहाँ पहले भागमें बतलाये हुए नियमोंका जिस हद तक पालन किया जायेगा, उसी हद तक स्वास्थ्य प्राप्त हो सकेगा। पर ऐसे स्वस्थ मनुष्यको