पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 12.pdf/९५

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५९
संघर्ष


करे या न करे, सत्याग्रही तो अपनी टेक नहीं छोड़ सकेंगे। इसलिए उन्हें समझ रखना चाहिए कि इस बारकी लड़ाईमें, हो सकता है, उन्हें बहुत कष्ट भोगना पड़े। इसके सिवा सत्याग्रहियोंमें और दूसरे लोगोंमें मुकाबलेकी बात नहीं है। कोई दूसरा व्यक्ति जेल जाये या न जाये, इससे उन्हें कोई सरोकार नहीं। कुछ लोग ऐसा कहते सुने गये हैं कि सेठ लोग जायेंगे तो हम भी जायेंगे; यदि वे नहीं गये तो हम गरीब क्यों मरें। तमिल कहते है कि गुजराती लोग लड़ाई में शामिल होंगे तभी हम होंगे। हिन्दू कहते हैं, मुसलमान शामिल होंगे तो हम होंगे। व्यापारी कहते है कि हम तो अपने हितकी रक्षा भली-भाँति कर सकते हैं; किन्तु यदि फेरीवाले आगे आयें तो समाजकी खातिर हम भी आ जायेंगे। जो लोग इस तरहकी बातें करते हैं, उनमें से किसीको सत्याग्रही नहीं कहा जा सकता। जिसे व्यापारमें रस है वह व्यापार करेगा; वह दूसरोंकी होड़में नहीं बढ़ेगा। सत्याग्रही वही हो सकता है जिसे सत्याग्रहमें रस मिलता है। उसे समझना चाहिए कि वह संघर्ष में किसीपर उपकार करनेके लिए नहीं उतरा; बल्कि इसलिए उतरा है कि सत्याग्रहका महत्त्व उसकी समझमें आ गया है, सत्याग्रह उसे भाता है और उसमें सत्याग्रहके निर्वाहकी शक्ति है। सत्याग्रह करने में पहले उसीका हित है और उसके इस हितमें समाजका हित निहित है। स्वदेशाभिमानीके कार्यका अपने हित और देशके हितसे कोई विरोध-भाव नहीं होता। यदि वह इन दोमें विरोध मानता है तो वह स्वदेशाभिमानी नहीं है। माँ अपने पुत्रकी सेवा करती है तो ऐसा करके वह उसपर अपनी प्रभुता नहीं चाहती। इसी प्रकार पुत्र अपनी माँकी सेवा करके इस बातका गर्व नहीं करता। जिसने देशको या धर्मको अपना सब-कुछ समर्पित कर दिया है, वह अपना कर्त्तव्य' समझकर ही ऐसा करता है। वह उसी में अपना हित मानता है--फिर इसमें ऐसी विशेषताकी क्या बात है? दूसरे क्या कर रहे हैं, यह सवाल क्यों उठाना चाहिए? दूसरोंसे द्वेष क्यों करना चाहिए? सत्याग्रही सत्याग्रहके लिए शर्ते नहीं लगा सकता। उसने तो अपना तन-मन-धन सब अर्पित कर दिया है। इसलिए न तो वह धनके नाशसे डरता न उसे शरीरके नाशका भय लगता है। उसने तो मृत्युके साथ सौदा किया है। उसके लिए बीचको स्थिति है ही नहीं। जो ऐसा मानता है, वही लड़ाईका निर्वाह कर सकता है। जो ऐसा मानता है, वह मर कर भी जियेगा। और हम आशा करते है कि जिसमें ऐसा प्रखर उत्साह न हो वह इस बार जेल जानेके लिए आगे न आयेगा। हमारा दृढ़ विश्वास है कि ऐसे विचार रखनेवाले पचास, पाँच, या एक भारतीय भी मिल जाये तो हमारी मांग प्राप्त कर लेनेके लिए यह काफी होगा।

जेल न जानेवालोसे

अन्त में कुछ शब्द हम जेल न जानेवालोंसे कहेंगे। अब कोई किसीको लज्जित नहीं करेगा। किन्तु इसलिए जेल जानेकी जरूरत नहीं है, ऐसा मान कर कोई भारतीय बैठा नहीं रह सकता। एक भी भारतीय काफी होगा, इसलिए दूसरोंको यह मानकर बैठे नहीं रहना चाहिए कि उन्हें जाने की जरूरत नहीं है। जेल जानेवाला अकेला होते हुए स्वयं भले सन्तोष माने किन्तु न जानेवालेको तो अपने मनमें स्वयं शरमाना