पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 12.pdf/९४

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५८
सम्पूर्ण गांधी वाङमय

केप और नेटाल

यह लड़ाई अकेले ट्रान्सवालकी नहीं है, समस्त दक्षिण आफ्रिकाकी है, इसलिए केप और नेटालको भी जाग जाना चाहिए। जोहानिसबर्ग इस लड़ाईकी नींव डाले. यह तो उचित है; किन्तु केप और नेटाल बैठे रह जायें तो उनका ऐसा करना उनके लिए लज्जाजनक होगा। केप और नेटालसे भी जेल जानेवाले लोग' मिलने चाहिए। और इन दोनों प्रान्तोंमें जोहानिसबर्गको जैसी सभाएँ भी होनी चाहिए। सरकार हमें भले अलग-अलग रखे, किन्तु हम तो अपने कार्योंसे अपनी एकता (यूनियन) प्रदर्शित कर ही सकते हैं।

पिछली लड़ाईसे तुलना

पिछली लड़ाई में हमने देखा कि जो लोग जेल नहीं गये उनमें से कुछने समाजके इस कार्य में रुकावट डाली और वे सत्ताधीशोंसे भी मिल गये। कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने रुकावट तो नहीं डाली किन्तु वे मुंह छिपाकर बैठे रहे और उन्हें जो दूसरी मदद करनी चाहिए थी वह भी उन्होंने नहीं की। इस बार जो प्रस्ताव' हुआ है, उससे ये दोनों कठिनाइयाँ दूर हो जानी चाहिए। समाजके खिलाफ किसी भी कारणसे कोई किसी प्रकारकी हलचल करता है तो वह समाजका और उस हद तक अपना भी अहित करता है। लोगोंके छिपकर बैठे रहने से हमारी शक्तिमें उतनी कमी हुई, हमारी लड़ाईको उससे धक्का लगा; किन्तु उस समय हम किसी दूसरी तरह लड़ भी नहीं सकते थे। हम सबकी अग्नि-परीक्षा हो रही थी। तब हम एक-दूसरे में फर्क नहीं कर सकते थे। अमुक व्यक्ति जेल नहीं जा सकेगा, ऐसा कहने पर उस व्यक्तिका अपमान होता था और समाजमें उसकी अप्रतिष्ठा होती थी। यह ठीक भी था। अब हमारी परीक्षा हो चुकी है। हम आगसे गुजर चुके हैं। जो जेल नहीं जायेगा उसकी अप्रतिष्ठा नहीं होगी;उसे शरमाना नहीं पड़ेगा। उसमें उतना बल नहीं है, यह बात उसने और समाजने देख ली है। जो लोग जेल जानेको तैयार हैं उन्हें इस बातका गर्व नहीं करना है। उन्हें ऐसा नहीं समझना है कि वे कोई बड़ा काम कर रहे हैं। हम सब एक ही शरीरके अंग हैं। आँख देखनेका काम कर सकती है, इसका यह मतलब नहीं है कि वह पैरोंका तिरस्कार करे। पैर आँखकी तरह देखनेका कार्य नहीं कर सकते, किन्तु उसमें उन्हें निराश होनेका कोई कारण नहीं। पर अपने विशेष गुणके अनुसार अपना कार्य करते हैं और आँख अपने गुणके अनुसार। शरीरको दोनोंकी जरूरत है। किन्तु यदि उनमें से कोई अपने गुणके अनुसार शरीरको उसका बोझ वहन करने में मदद नहीं करता तो अवश्य लज्जित होनेका कारण है। ऐसी स्थितिमें शरीरको भी हानि पहुँचती है और उस अंगको भी। जेल जाने या न जानेवालोंपर भी यही बात लागू होती है।

जेल जानेवालोंसे

अब दो शब्द जेल जानेवालोंसे । इस बार यदि लड़ाई शुरू होती है तो वह लड़ाई बड़ी होगी। यदि समाज जेल-यात्रियोंके पीछे एक-मत होकर खड़ा रहा तो बहुत सम्भव है कि लड़ाई जल्दी ही समाप्त हो जाये। किन्तु सामाज एक-मत रहे या न रहे, कोई मदद