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४४. संघर्ष

सत्याग्रहका प्रस्ताव

जोहानिसबर्गकी सार्वजनिक सभाने नये विधेयकके सम्बन्धमें सत्याग्रहकी लड़ाई लड़ने का प्रस्ताव किया है और यदि सरकार हमारी माँग स्वीकार नहीं करती तो इसमें अब कोई सन्देह नहीं है कि सत्याग्रह पुनः शुरू किया जायेगा। यह सभा मामूली नहीं थी। इसमें भारतीय बड़ी संख्या में उपस्थित हुए थे और हरएक शहरसे वहाँके नेतागण आये थे। अब यदि लड़ाई शुरू होती है तो ऐसी सम्भावना है कि उसकी योजना कुछ भिन्न प्रकारकी होगी। पहलेकी लड़ाईमें हम यह नहीं कह सकते थे कि कौन जेल जायगा और कौन नहीं जा सकेगा।[१] हमारे पास समाजकी शक्ति या अशक्तिको जाननेका साधन नहीं था, लेकिन अब हमें इसका अनुभव हो चुका है। अब हम सामान्यतः इस बातका अनुमान कर सकते हैं कि जेलमें कौन-कौन और कितने लोग जायेंगे। सरकार भी हमारी शक्तिसे परिचित है। पिछली बार हम हरएकसे जेल जानेकी आशा करते थे। हम हरएकसे इस बातका आग्रह भी करते थे। वह तालीम हासिल करनेका समय था। जो लोग आग्रह करते थे और जिनसे आग्रह किया जाता था उन दोनोंके लिए वह एक नई स्थिति थी। अब हम इस सम्बन्धमें अपने अनुभवके बलपर कहीं ज्यादा समझदार हो गये हैं।

लड़ाईकी योजना

इसलिए श्री काछलियाने इस बातको स्पष्ट कर दिया है कि अब न तो हम भ्रममें रहना चाहते हैं और न सरकारको भ्रममें रखना चाहते हैं। सभाने प्रस्ताव भी ऐसा किया है कि प्रस्तावका समर्थन करनेवाला जबतक स्वयं अपनी जेल जानेकी इच्छा घोषित न करे तबतक जेल जानेके लिए बँधा नहीं है। सत्याग्रहको पसन्द करनेवाला प्रत्येक व्यक्ति प्रस्तावके साथ अपनी सहमति प्रकट कर सकता है और इस तरह प्रस्ताव में भाग ले सकता है। प्रस्तावको र करनेवाला समाजसे और सरकारसे केवल इतना ही कहता है कि वह सत्याग्रहकी लड़ाईका औचित्य और आवश्यकता स्वीकार करता है। वह सरकारका विरोध करेगा और स्वयं जेलमें न जाये तो भी जेलमें जानेवालोंको पैसेसे अथवा दूसरी तरहसे मदद करेगा। जेल-यात्रियोंके कुटुम्बियोंकी सँभाल करेगा। लड़ाईसें सम्बन्धित दूसरे उपयोगी कार्य करेगा, यदि आर्थिक दृष्टिसे गरीब होगा तो शारीरिक श्रम करके संघर्ष में मदद पहुँचायगा। हमेशा अपना कुछ-न-कुछ समय उसे आगे बढ़ाने में देगा। कानूनका कोई भी लाभ खुद नहीं उठायेगा और किसी भी प्रकार सरकारके अन्यायका समर्थन नहीं करेगा।

  1. १. तात्पर्य १९०९ के सत्याग्रह आन्दोलनसे है, जिसके बाद भारतीयोंकी बड़े पैमानेपर गिरफ्तारी हुई और गिरफ्तार लोगों में स्वयं गांधीजी भी शामिल थे; देखिए खण्ड ९ ।