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४३. विधेयक

जोहानिसबर्गको सार्वजनिक सभा ऐन मौकेपर ही हुई है। उसका प्रस्ताव अत्यन्त सामयिक है। सभाकी रचना, ट्रान्सवालके अधिकांश भागोंसे आये हुए प्रतिनिधियोंकी संख्या, और श्री फिशरको भेजे गये सन्देशोंसे मन्त्री महोदयपर यह प्रकट हो गया होगा कि जबतक वे श्री काछलियाके तारमें बताई गई दिशामें विधयक संशोधित करने-सम्बन्धी ब्रिटिश भारतीयोंकी प्रार्थना स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं होते तबतक भारतीय सन्तुष्ट नहीं किये जा सकते। इसलिए अपने मूल्यवान विधेयकके द्वितीय वाचनके अवसरपर श्री फिशरका यह कहना समझमें नहीं आता कि यह विधेयक भारतीय समाजको सन्तुष्ट कर देगा। बहसके दौरान श्री चैपलिनने बहुत बढ़िया भाषण दिया और सामयिक चेतावनी देते हुए कहा कि यह विधेयक निरर्थक है और यूनियनिस्ट दल उसे तबतक स्वीकार नहीं कर सकता जबतक कि श्री फिशर यह निश्चित आश्वासन नहीं देते कि भारतीय सन्तुष्ट है। यद्यपि विधेयक एक मंजिल आगे बढ़ा दिया गया है, हमारा खयाल है कि वह तृतीय वाचनकी मंजिल तक कभी नहीं पहुँचेगा। किन्तु सत्याग्रहियोंके लिए तो यही अच्छा होगा कि वे अपनेको तैयार रखें। यह आशा की जाती है कि यदि संघर्ष पुनः छेड़ा गया तो आगामी संघर्ष शुद्धतम, अन्तिम और सबसे शानदार होगा। थोरोके समान हमारा भी विश्वास है कि “सचाईके पक्षमें विजय प्राप्त करने के लिए केवल एक सच्चा सत्याग्रही भी काफी है।" सचाई हमारे साथ है। सचाई उस सरकारके पक्षमें नहीं हो सकती जिसे अपने पवित्र वचनोंका कोई खयाल नहीं। और हमारे बीच अनेक सच्चे सत्याग्रही हैं। हम भी एक आदर्श सत्याग्रहीकी परिभाषापर पूरे न उतरें, न सही; परन्तु हमें इतना विश्वास है कि हमारे समाजमें ऐसे अनेक लोग हैं जो उस हद तक आदर्शके निकट पहुँच सकते हैं जिस हद तक किसी मनुष्य के लिए सम्भव है। इस महान् कर्त्तव्यका भार ऐसे ही लोगोंके ऊपर है।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ३-५-१९१३